Category: साहित्य
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती आदर्शिनी श्रीवास्तव की रचना
सम्बोधन जो तजकर आई वो ही आकर अपनाया वो सबकी अम्मा थीं लेकिन हमको मम्मी ही भाया कभी झुर्रियां गालों की छूने को मन ललचा जाता ढीली हुई बाँह कोमल छू छूकर मन हरषा जाता सभी डोर को एक मुष्टि कर सहलाती दुलराती थीं हर रिश्ते को जोड जोड सबकी सीवन बन जाती थीं कष्ट…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती रजनी श्रीवास्तव की रचना
माँ कहाँ आवाज दूँ माँ घर आँगन का हर कोना छान मारा तुम न जाने क्यों हमें छोड़ चली माँ कहाँ आवाज दूँ माँ… माँ तुमने हमें जन्म दिया जन्म दात्री कहलाई स्नेह दुलार की छत्रछाया में रख वात्स्ल्य की मूर्ति कहलाई रुग्णता में सेवा सुश्रुषा कर सेविका कहलाई नाजों से पाला बड़ा किया पढ़ाया…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती सीमा श्रीवास्तव की रचना
ममता का आंचल लहराता है, फूलों की बरसात होती है। जब भी मैं तनहा होती हूं तो, मेरी मां मेरे साथ होती है। गृहस्थी की बगिया में गुलाब बन कर रातों में मेरे साथ ख्वाब बन कर मेरे हर सवाल का जवाब बन कर मेरे होंठों पर अल्फ़ाज़ बन कर मेरे हौसलों की परवाज़ बन…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में डॉ. रूपल श्रीवास्तव संभवी की रचना
मेरी माँ मुझे प्रेम करें इतना,जितना किसी के वश में नहीं। मैं प्रेम करूं या पूजा,उनसा नहीं कोई दूजा जग़ में कहीं। ममता की देकर छाया, एक एक पग है चलाया, देकर थपकी ले आई, स्वप्नो के नगर में सुलाया, मंदिर में जाकर जिनको पूजें, माँ तो है देवी वही ।।1।। मेरी मां………
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में डॉ. नीलिमा रंजन की रचना
ओ माँ! स्मरण है मुझे नि:शर्त तुम्हारी ममता, तुम्हारा दुलार तुम्हारी स्मित, तुम्हारा हास, तुम्हारे हाथों से बने भोजन के ग्रास, तुम्हारे हाथों से गुँथी दो चोटियाँ, तुम्हारे हाथों से बंद होते फ्राॅक के बटन। और आज, उम्र के अंतिम पड़ाव पर तुम, विवश, पराश्रित, असंबद्ध सी तुम, उफ्!!! भूली सी हो तुम मेरा स्पर्श,…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर प्रसिद्ध कवि गिरिजा कुमार माथुर की जीवन-संगिनी, शकुंत माथुर की रचना
ये हरे वृक्ष यह नई लता खुलती कोंपल यह बंद फलों की कलियाँ सब खुलने को, खिलने को, झुकने को होतीं स्वयं धरा पर। धूल उड़ रही, धूल बढ़ रही, जबरन रोकेगी यह राह अपनी धाक जमा कर ज़ोर जमा कर आँधी। तोड़ रही कुछ हरे वृक्ष सब नई लता— ये परवश हैं इस धरती…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर नई पीढ़ी की कवयित्री अलंकृति श्रीवास्तव जबलपुर की रचना। गहराई
पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर नई पीढ़ी की कवयित्री अलंकृति श्रीवास्तव जबलपुर की रचना। गहराई गहराई आकाश नीला था, नीला मेरा पसंदीदा रंग मुझे आकाश से प्रेम हुआ, मैंने उसे चूमना चाहा, पर आकाश दूर था मैंने कहा पास आओ— मैं तुम्हें चूमना चाहती हूँ आकाश चुप रहा फिर कक्षाएँ जो चलती ही रहती…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर दस महीने बाद माँ के घर ..मेरा देवघर – रानी सुमिता
दस महीने बाद माँ के घर ..मेरा देवघर झुके झुके आ रहे अमलतास के फूल ट्रेन की खिड़की से विह्ल नजरों से ताक रहे, सिन्दूरी आभा लिए उतर रही है वही साँवली पहाड़न शाम आज कितनी उदास ! नीले गगन में छितराये हैें बौराये से केसरिया बादल जसीडीह में उतरना मन को निचोड़ रहा आज…
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पर्यावरण दिवस की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं पर्यावरण दिवस पर मेरे भाव- श्रीमती सुषमा श्रीवास्तव ‘सजल’ रचना के माध्यम से
पर्यावरण दिवस पर मेरे भाव रचना के माध्यम से आप तक पहुंचा रही हूं| विषय–हमारा पर्यावरण कितनी प्यारी धरती, कितना सुन्दर गगन बाहर निकल कर देखो,अपना पर्यावरण| सूरज निकला है सिदूंरी,फैला नवल प्रकाश पंख पसारे चिडि़या देखो,उड़़ती है आकाश कल-कल करती नदियां, ठहरा नीला समुन्दर धरती ने ओढी देखो, धानी सी चुनर| कितनी सुंदर धरती,कितना…
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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर स्वास्थ्य दिवस पर आधारित उषा सक्सेना, भोपाल की रचना
बंधन सात फेरों का बंधन जुड़ा ऐसा गठबंधन सात जन्मों का बंधन प्रीति का है अनु बंधन । कभी न. जाये ये तोड़ा किसी से जाये ना छोड़ा रहेंगे सदा ही संग हम कभी ना छूटे यह संग । जनम हम जब भी लेंगे तुम्हारे ही संग में होंगे प्रीति का रंग है गहरा लगे…