पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर स्वास्थ्य दिवस पर आधारित उषा सक्सेना, भोपाल की रचना

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बंधन
सात फेरों का बंधन
जुड़ा ऐसा गठबंधन
सात जन्मों का बंधन
प्रीति का है अनु बंधन ।
कभी न. जाये ये तोड़ा
किसी से जाये ना छोड़ा
रहेंगे सदा ही संग हम
कभी ना छूटे यह संग ।
जनम हम जब भी लेंगे
तुम्हारे ही संग में होंगे
प्रीति का रंग है गहरा
लगे चाहे कितना पहरा ।
प्यार कर तुमसे हमने
मांग सिन्दूर से भरने
खींच सीमांतक रेखा
भाग्य से जोड़ा लेखा ।
प्रतीक्षा है उस पलकी
प्रतीक्षित वाले कल की
तोड़ कर सारे बंधन
करेंगे अर्पित तन मन
प्यार की ज्योति जलेगी
नहीं वह कभी बुझेगी
दिशायें आलोकित कर
तमस का हरण करेगी ।
मौत भी तोड़ ना पाये
साथ जो छोड़ ना पाये
जला दें देह निरी यह
कहीं वह जा ना पाये ।
अनूठा है यह बंधन
आत्माओं का बंधन
उसे हम ढूंढ़ ही लेंगे
कहीं फिर वहीं मिलेंगे ।
उषा सक्सेना:-मौलिक

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