पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर प्रियंका श्रीवास्तव की रचना चित्रकूट हूँ मैं

चित्रकूट हूँ मैं माँ भारती का अभिमान हूँ मैं, सनातन संस्कृति का गान हूँ मैं, श्री राम के चरणों की रज हूँ मैं, इस भू धरा का दिव्य तेज हूं मैं, सीता राम के जीवन मूल्यों का केंद्र हूँ मैं, हां.. चित्रकूट हूँ मैं, पुण्यसलिल चित्रकूट हूं मैं, राम के ग्यारह वर्षो का साक्षी हूँ … Read more

ईश्वर की अनुपम कृति है आंखे, जीवन को धन्य बनाती आंखे, देखती है दुनिया का नज़ारा, ऐसी अनमोल हमारी आंखे – सुषमा श्रीवास्तव

ईश्वर की अनुपम कृति है आंखे, जीवन को धन्य बनाती आंखे, देखती है दुनिया का नज़ारा, ऐसी अनमोल हमारी आंखे| रहती है पलकों से सुरक्षित आंखे, गोल मटोल,कटीली,आंखे, देखकर  अपनो को तृप्त होती , शर्माती  लाज से झुक जाती आंखे| मन के भाव बताती आंखे, ईशारो से  समझाती आंखे, सुन्दरता में चार चांद लगाती खुशी … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर सीमा खरे आह की रचना

 विनती हे शारदे करती हूँ विनय सम्मुख तेरे कर जोड़ के, तू कर चमत्कार हे! जगत मात्रिके मानव अब धर्मों को तौलना छोड़ दे। अपनत्व और सौहार्द्र के झरने सदैव झरते रहें , नफरतों ,अलगाव के तूफानों का रुख तू मोड़ दे। काया ,साया ,रक्त, चेहरा है सभी का एक सा, हृदय में भरते घृणा … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर प्रिया सिन्हा की रचना तुम ऐसी क्यों हो गई मां

तुम ऐसी क्यों हो गई मां तुम ऐसी क्यों हो गई मां, कितनी कष्ट सह जन्म दिया मुझे मां, सब से बचा सहेज कर रखी मां, दुःख भी सहे होंगे मेरे लिए, तब तेरी कष्ट दिखता नहीं था मुझे, क्योंंकि मै छोटी थी मां। अपने हाथों से पाला मुझे,गोद में उठा सब जगह घुमाया था, … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती ऋचा सिन्हा की रचना

मेरी माँ  मेरी माँ याद आती है मुझे मेरी माँ वो तड़के  ही उठ जाना उठकर बुहारना पोछना  सींचना वो ओस की बूँदो जैसी मेरी  माँ याद आती है मुझे मेरी माँ परात भरकर आटा गूँधना परत दर परत चपातियाँ सेंकना वो गैस के चूल्हे पे सिकती मेरी माँ याद आती है मुझे मेरी माँ … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर ऋतु खरे की रचना पिता और पंचतत्व

पिता और पंचतत्व आज का दिन है अद्भुत सा, कुछ जीवित कुछ मृत सा, प्राण का हर मूल तत्व लगे कुछ विष कुछ अमृत सा, जलता बुझता सा दिखा जब घनी छांव सा वह हाथ, जीवन की लाख स्मृतियां ज्वलंत हो गई एक साथ। सातवें आसमाँ की नीलिमा में बसा मेरा स्वर्ग से सुन्दर बचपन, … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर सीमा खरे आह की रचना आँचल माँ का

माँ का आँचल ही सारा जहान होता है। हर बच्चे की दुनिया और अरमान होता है। माँ धरा सी जो  धुरी पर घूमती रहती  है पल्लू ममत्व का रंगों भरा आसमान होता है। जन्म से लपेट के जिसमें छाती से लगाये रखती है हाथों की दीवारों में बिछौना या ओढ़ान होता है तपते सूर्य के … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती सवीना वर्मा की रचना

माँ मेरी माँ कुदरत का बेहतरीन करिशमां सबसे जयादा जुदा – सबसे जयादा तन्हां माँ मेरी माँ —- बिना सहारे  के चढ़ी, वो फूलों की  बेल थी सुबह की धूप थी -तपती दोपहर की छां माँ मेरी माँ ——— उसके साये में बड़ा सुकून था मुझको विशाल बरगद की मानिंद थी उसकी छां माँ मेरी … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में प्रियंका श्रीवास्तव की रचना

‘मेरी माँ’ दुर्गम कठिन जंजालों में, कंटीले से झाड़ो में, जीवन झंझावातों में, तुम नही हो मां पर याद साथ है। सुख में दुख में, हर कठिन परीक्षा में, कभी मन के उल्लास में, तो कभी वेदना के आर्तनाद में, तुम नही हो मां, पर याद साथ है.. नयनों में स्वप्नों में, जीवन जल तरंगों … Read more

पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती रचना श्रीवास्तव की रचना

” माँ ” मेंरी औकात नहीं , कि तुझे शब्दों में बाँध सकू। कोख में रख, खून से सीचा मुझे, तेरे जैसा और कोई माली नहीं, जिसकी मैं कीमत चुका सकू, “माँ” मेरी औकात नहीं कि तुझे…… तेरे प्यार की समुद्र सी गहराई, है कोई पैमाना नहीं, जिससे मैं माप सकू, “माँ” मेरी औकात नहीं … Read more