पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर सीमा खरे आह की रचना आँचल माँ का

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माँ का आँचल ही सारा जहान होता है।
हर बच्चे की दुनिया और अरमान होता है।

माँ धरा सी जो  धुरी पर घूमती रहती  है
पल्लू ममत्व का रंगों भरा आसमान होता है।

जन्म से लपेट के जिसमें छाती से लगाये रखती है
हाथों की दीवारों में बिछौना या ओढ़ान होता है

तपते सूर्य के तेवर तले,
जलते झुलसते तन के लिऐ
शीतल बयार की फुहार लिरे   लहराता सावन   होता है।

किशोर वय की सहमी  सकुचाई सुता का संरक्षक ,
नारी शक्ति सेना का अडिग
ध्वज आरोहण होता हे।

यौवन की उद्दाम लहरों पर  किनारों सा ठहरापन होता है   अपनों की अमोल निद्रा के लिए पंखे की झालन होता है।

सात्विक सुच्चा माँ का पल्लू
साड़ी का  आकर्षण होता है।
संतानों के हर सुख  दुख में ,
आच्छादित वटवन  होता है।

पाँच गजी पैरहन में लिपटी देवी का,हमराज सखा,
दुख में बरसती आँखों का   पहला हमदम  होता है।

माँ के आँचल के हज़ार रूप,
माँ के ममतामयी अनंत रूप
पावन अरु वंदनीय लिखावट अविस्मर्णीय संस्मरण होता है ।

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