माँ मेरी माँ कुदरत का बेहतरीन करिशमां
सबसे जयादा जुदा – सबसे जयादा तन्हां
माँ मेरी माँ —-
बिना सहारे के चढ़ी, वो फूलों की बेल थी
सुबह की धूप थी -तपती दोपहर की छां
माँ मेरी माँ ———
उसके साये में बड़ा सुकून था मुझको
विशाल बरगद की मानिंद थी उसकी छां
माँ मेरी माँ —–
वक्त के समंदर को बाहों में समेटा जिसने
वक्त को जो मात दे दे-ऐसा थी वो समां
माँ मेरी माँ ———
हिमालय सा पवित्र माथा था उसका
सुहाग का सूरज,जिसपे मैंने न देखा
माँ मेरी माँ —–
श्वेत गंगा सा वो सिमटा सा आँचल
ममता पिघलती रही -फ़ूंकती रही मुझमें जां
माँ मेरी माँ ,—-
कुदरत का बेहतरीन करिशमां
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