माँ कहाँ आवाज दूँ माँ
घर आँगन का हर कोना छान मारा
तुम न जाने क्यों हमें छोड़ चली
माँ कहाँ आवाज दूँ माँ…
माँ तुमने हमें जन्म दिया जन्म दात्री कहलाई
स्नेह दुलार की छत्रछाया में रख
वात्स्ल्य की मूर्ति कहलाई
रुग्णता में सेवा सुश्रुषा कर
सेविका कहलाई
नाजों से पाला बड़ा किया
पढ़ाया लिखाया योग्य बनाया
भाग्य निर्माता कहलाई
पिता के साथ हर कदम चल
सुख दुख साथी बन, अनुगामिनी कहलाई
अपने हाथों से हमें भोजन बना परोसा
अन्नपूर्णा कहलाई
हर दायित्व का मुस्तैदी से निर्वहन कर
परिवार की धुरी कहलाई
जब ज़ब मुश्किल आन पड़ी
तुम चट्टान बन रही डटीं
कभी स्नेहसलिला बन कभी बन सखी
हर पल जीवन पथगामिनी बनी
माँ तुम्हें मैं किन किन शब्दों से अलंकृत करुँ
तुम मेरी आत्मा की आवाज बन झँकृत हो
घर के हर कोने में है याद भरी
परछाई बन अहसास दिलाती
माँ कहाँ हो तुम
घर का हर कोना छान मारा
तुम न जाने हमें क्यों छोड़ चली ..
पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती रजनी श्रीवास्तव की रचना
- June 15, 2024
- 2:45 pm
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