पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच द्वारा माँ विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में श्रीमती आदर्शिनी श्रीवास्तव की रचना

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सम्बोधन जो तजकर आई वो ही आकर अपनाया
वो सबकी अम्मा थीं लेकिन हमको मम्मी ही भाया

कभी झुर्रियां गालों की छूने को मन ललचा जाता
ढीली हुई बाँह कोमल छू छूकर मन हरषा जाता
सभी डोर को एक मुष्टि कर सहलाती दुलराती थीं
हर रिश्ते को जोड जोड सबकी सीवन बन जाती थीं
कष्ट किसी पर जब आया पिन्नी दुरदुरिया चबवाया

नहलाया जब भी हाथों से बाल बनाया है मैने
गर्व हुआ है ख़ुद पर माँ सौभाग्य मनाया है मैने
वृद्ध हथेली के नीचे कई अनुष्ठान है सफल हुए
पोते और पोतियों के हैं सुंदर सज्जित महल हुए
जब भी मन से याद किया है अपने अगल बगल पाया

उनकी आकृति हृदय पटल पर अक्सर ही बन बन जाती
अब भी स्मृतियों में सूरत जाती और आती
मम्मी का रहना बस जैसे सघन विटप की छाया थी
हर आने वाले का जाना ये भी जग की माया थी
कितना ही कहते जाये हम पर दिल मेरा भर आया

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