पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर नई पीढ़ी की कवयित्री अलंकृति श्रीवास्तव जबलपुर की रचना। गहराई

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पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर नई पीढ़ी की कवयित्री अलंकृति श्रीवास्तव जबलपुर की रचना। गहराई

गहराई

आकाश नीला था,
नीला मेरा पसंदीदा रंग
मुझे आकाश से प्रेम हुआ,
मैंने उसे चूमना चाहा,
पर आकाश दूर था
मैंने कहा पास आओ—
मैं तुम्हें चूमना चाहती हूँ
आकाश चुप रहा
फिर कक्षाएँ जो चलती ही रहती हैं,
उन्हीं में से
किसी एक विषय की किसी एक कक्षा में
कहा गया
ऊँचा उठो और आकाश को चूम लो
मैं ऊँचा उठी,
पर आकाश अब भी दूर था
मैं और ऊँचा उठी,
आकाश अब भी उतना ही दूर रहा
मैं ऊँचा उठती रही,
आकाश उतना ही दूर बना रहा
तब निराशा और वियोग में
मैं गिरने लगी
गिरते-गिरते अपनी ज़मीन से भी नीचे पहुँच गई
आकाश अब भी उतना ही दूर था
तब गहराई की ज़मीन ने मुझसे कहा
आकाश को ढूँढ़ रही हो या नीले रंग को
नीला भ्रम है
आकाश तो यहीं है
तुम्हारे सारे शरीर से लिपटा हुआ
तुम्हारे भीतर हर जगह फैला
उससे एक होने के लिए
उसे चूमना नहीं, महसूसना होगा

मैं
आकाश के लिए ऊँचा उठ रही थी,
जानती नहीं थी
वो तो गहरे उतरने पर मिलता है…

रचनाकार : अलंकृति श्रीवास्तव

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