ओ माँ! स्मरण है मुझे
नि:शर्त तुम्हारी ममता, तुम्हारा दुलार
तुम्हारी स्मित, तुम्हारा हास,
तुम्हारे हाथों से बने भोजन के ग्रास,
तुम्हारे हाथों से गुँथी दो चोटियाँ,
तुम्हारे हाथों से बंद होते फ्राॅक के बटन।
और आज, उम्र के अंतिम पड़ाव पर तुम,
विवश, पराश्रित, असंबद्ध सी तुम, उफ्!!!
भूली सी हो तुम मेरा स्पर्श,
खो गया है तुम्हारा दुलार,
बंद करती हूँ तुम्हारे गाउन के बटन,
बन जाती हूँ तुम सी,
बूँद बूँद पानी पिलाती,
छोटे छोटे ग्रास खिलाती,
समझ नहीं पाती यह तुम हो या मैं,
भूमिकाओं के उलटने का यह सुर, आह!!
माँ! प्यारी माँ !!! असहाय हो गई हूँ मैं,
समझा पुनः –
कि मैं तुम बिन अस्तित्वहीन,
जीवित रहोगी तुम मुझमें सदा ।
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