पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर प्रतिभा कुलश्रेष्ठ की रचना बटुआ

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बटुआ

बटुआ रूप अनेक  लिए
संभाल रखे कीमती सामान सभी
सबका नेह बसा बटुए में
लिए हाथ सब रहते हैं
हम भी एक बटुआ लिए
बड़े संभाले रहते हैं
धन की नहीं मन की खनक से भरा……
हर रिश्ते की कीमत को सजाए जरा
चाचा मौसी बुआ फूफा भाई बहन के नोटों का
एक बटुआ हम भी टांगे कंधों पर
अपनों से भरा…..
मन को वजन भी कई बार लगता है
बोझ सा नैनो को दिखता है
पर एहसास…….
बटुए की ताकत का
दिल दोनों हाथ से
और जरा कस के पकड़ लेता है

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