सरलता, सहजता और सादगी की त्रिगुण मूर्ति थे बाबू डॉ राजेन्द्र प्रसाद -रवीन्द्र

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पटना (बिहार) – कहा जाता है कि योग्यता और प्रतिभा अपने साथ सरलता,सहजता और सादगी के त्रिगुण नैसर्गिक रुप साथ लेकर आती है l इसके प्रत्यक्ष उदाहरण थे भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद l
यों तो उनके जीवन के ऐसे सैकड़ों उदाहरण है, मगर मैं बतौर बानगी उनकी विनम्रता की एक कहानी से आप सबों को रूबरू कराता हूँ l यह वाक्या उन
दिनों की है जब डॉ 0 राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे l उन दिनों कांग्रेस- अध्यक्ष की प्रतिष्ठा वायसराय से कम नहीं होती थी l सन 1935 का जमाना था l स्वतंत्रता
का आंदोलन उत्कर्ष पर था l आंदोलन और भारत से सम्बन्धित मसले को ले उन्हें तत्कालीन वरिष्ठ पत्रकार सी. आई. चिंतामणी से मिलना था l जरा सोचिए! वे चाहते तो किसी को भेज कर उन्हें कार्यालय में ही बुला सकते थे ,मगर उन्होंने ऐसा करना उचित नहीं समझाl
वर्षा हो रही थी, ठंढ का समय था lउनकी सादगी, सरलता और सहजता का उदाहरण देखिए और इसे अपने जीवन में स्थापित करने का प्रयास कीजिए, तो हर कोई उस ऊँचाई की ओर बढ़ सकता है l
उन्होंने सोचा:- उन्हें बुलाने से वे वर्षा में भींग जायेंगे, ठंढ़क भी अधिक है l दूसरे को कष्ट देने से अच्छा है स्वंय उनके पास चलूँ l वे वर्षा की फुहारों में भीगते हुए ‘ लिडर ‘ अखबार के कार्यालय में पहुंचे और चपरासी के
मार्फत अपना परिचय कार्ड संपादक के पास भेज दिया l लीडर उस समय का चर्चित अखबार था, जिसके सम्पादक सी. आई. चिंतामणी उस समय कुछ लिखने में व्यस्त थे l
चपरासी ने देखा कि संपादक जी व्यस्त हैं और ये कोई प्रमुख व्यक्ति नहीं लग रहे हैं l अतः उसने उनके परिचय कार्ड को उनके टेबल पर रख दिया और बाहर आकर उस सीधे-साधे देहाती से दीखने वाले उत्कृष्ट व्यक्ति के धनी राजेंद्र बाबु
को उपेक्षा की दृष्टि से इंतजार करने को कह दिया l सरल ह्रदय के स्वामी राजेन्द्र बाबू ने देखा कि बरामदे में कुछ चतुर्थ वरीय कर्मचारी आग ताप रहे है, तो वे स्वयं भी कुछ भींग गए
है, ठंढ़ भी है l उन्होंने सोचा, न जाने कितनी देर में उनकी व्यस्तता समाप्त होगी, क्यों न समय का सदुपयोग कर लिया जाय और वर्षा में भिगें कपड़ों को भी सूखा लिया जाय l यह सोच कर त्रिगुण के स्वामी राजेंद्र बाबुू चुप चाप एक ईंट उठाकर आग के पास जा कर
बैठ गए l आग ताप रहे लोग भी खिसक गए कि चलो कोई भीगा हुआ आदमी भी आग का आनंद ले ले l उधर चिंतामणी जी की नजर जब मेज पर पड़े परिचय कार्ड पर पड़ी, तो कार्ड देखते ही चौक गए l
उन्होंने तुरत घंटी बजाए और चपरासी को भीतर बुलाकर डाँटा कि कार्ड धारी सज्जन को नहींपहचानताl
वे कहाँ है? चपरासी ने बड़ी विनम्रता से कहा कि एक साधारण सा आदमी था l उन्हें मैंनें बाहर बैठने को कहा है क्योंकि हुजूर काम में व्यस्त थे l चिंतामणी जी अपनी कुर्सी छोड़ कर बाहर दौडे आए l आस-पास देखा तो कहीँ उनका पता नहीं था l एक बार चारो तरफ निगाहें दौड़ाने पर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को चतुर्थी वर्गीय
कर्मचारियों के साथ बैठा देख लिया l वे बड़े मजे लेकर आग ताप रहे थे और उन सबसे बड़ी आत्मीयतापूर्ण ,गप्पे लड़ा रहे थे औऱ अपने भींगे कपड़े भी सूखा रहें थे l चिंतामणी जी वहां दौड़े आए l बोले, बहुत अफसोस है कि आपको व्यर्थ ही कष्ट हुआl चपरासी नया था शायद आपको पहचाना नहीं, आपने अपना परिचय क्यों नहीं दिया? आत्मग्लानि से भरे हुए उनसे क्षमा मांगने लगे तो वे ऐसे हंस पड़े,मानो कुछ हुआ ही नहीं l हंसते हुए कहा, वक़्त मिलता कहां है? संयोग से कुछ वक़्त मिल गया तो ठंढ से बचने के लिए आग ताप कर गर्मी का भी सामना किया और भिन्गे कपड़े भी सूखा लिया lआप व्यर्थ परेशान न हों l आपकी अपनी व्यस्तता हैं उनमें हम लोग कष्ट देने पहुंच जाते है यह वाक्य बहुत छोटा है, मगर अपने में आत्म सात करने की है l
आज राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष की बात तो छोड़िए ,छोटे-मोटे अध्यक्ष और मंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर लोंगों को पानी-पानी कर देते हैं l मगर सादगी सरलता और सहजता की त्रिगुण मूर्ति ने जो उदाहरण पेश किया बह आज भी अनुकरणीय हैं l अपने में आत्मसात करने की आवश्यकता है l साधारण बातों पर ध्यान न देना, उन्हें अनावश्यक तूल न देना ही सरलता, सादगी और सहजता के त्रिगुण है वे ही बिहार के लाल राजर्षि राजेंद्र. बाबू भारत के प्रथम राष्ट्रपति और प्रथम नागरिक सम्मान के हकदार बने l
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