पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर भोपाल, मध्यप्रदेश से डॉ. रेणु श्रीवास्तव की रचना

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होली हमजोली

पलास का वर्ण रक्तिम हुआ
फाग का उत्सव अब शोभित हुआ

होली के रंग लगते सब प्यारे
कुंज गलिन में राधा कान्हा न्यारे

रंग है मस्ती का खुश हो मनाते
हरा लाल नीला पीला सब अपनाते

फागुन की बहार में झूम रहा मन
रंग बरसे प्रेम का आतुर है तन

होली के रंग देख विरहिणी बोले
अब आ जा साजन मन मेरा डोले

मन अब ना माने कावा काशी
बस मानवता के रंग में रंगे धरा वासी

होली के रंग में प्रेम भी मिलाना
हरा पीला रंग सब लगेगा सुहाना

सुहानी धरा में सब रंग भी  मिलेंगे
सरसों पलास हरित पर्ण भी खिलेंगे

होली के रंग में कान्हा रंगे रहे अरसों से
रेणु कहे बृज होली दरश मुराद पूरी बरसों से

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