मोरी कोरी चुनरिया, न रंग रसिया
मोरी कोरी चुनरिया, न रंग रसिया।
मोहे होरी पे कर तू, न तंग रसिया।
भोर में पहली पहर उठी रे,
पुलकित मन में लहर उठी रे।
पूजन थाल में भोग सजाऊँ,
होलिया में आखत डालन जाऊँ।
बीच गलियन में कर तू, न जंग रसिया।
मोहे होरी पे कर तू, न तंग रसिया।
रूप लावनी मेरो नीको,
रंग कान्हा को पक्को तीखो।
महंगी चुनर मथुरा से मंगाई,
रंगन को आतुर करत लराई।
हठ करे मनमौजी, मलंग रसिया।
मोहे होरी पे कर तू, न तंग रसिया।
भीजे अंगिया, भीजे चुनरिया,
भर पिचकारी रंग दे साँवरिया।
रंग में रंग दी चूनर कोरी,
करूँ मैया से शिकायत तोरी।
माँ जसोदा छरेंगी, अंग-अंग रसिया।
मोहे होरी पे कर तू, न तंग रसिया।
दीप्ति सक्सेना– बदायूँ , उत्तरप्रदेश
आप इस रचना को लाइक, कमेंट और शेयर कर सकते है
आप भी भेजे अपनी रचनाएं / कविताएं
अपनी स्वरचित कविताओं और रचनाओं को कायस्थ समाज वेब पोर्टल के माध्यम से विश्व के लाखों लोगों तक पहुचानें के लिए यहाँ क्लिक करें
kayasthasamaj.in@gmail.com
Whatsapp 9111003337
Post Views: 127