कायस्थ – उन्नति का पथप्रदर्शक समाज – वेद आशीष श्रीवास्तव

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कायस्थ – उन्नति का पथप्रदर्शक समाज

✍🏻 लेखक: वेद आशीष श्रीवास्तव
युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा

कायस्थ — यह मात्र एक जाति नहीं, बल्कि एक चेतना, एक संस्कृति, एक विचारधारा है। यह वह समाज है जो अपने बौद्धिक बल, कर्मठता और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ न केवल अतीत की नींव पर खड़ा हुआ, बल्कि भविष्य के निर्माण में भी अग्रणी भूमिका निभाता आया है। कायस्थ गतिशीलता, दूरदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है — वह जो ठहरता नहीं, थकता नहीं, और कभी हार नहीं मानता।
विद्वान आचार्य गोविन्द आर्य ने कहा था:
“भूमि मृदा कायस्था:” — अर्थात यह पृथ्वी कायस्थों को निर्माण, शासन और सेवा के लिए सौंपी गई है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक तथ्य है, जिसे कायस्थों के कर्म, योगदान और नेतृत्व ने सिद्ध किया है।
कायस्थ समाज ने लेखन और शासन, कला और प्रशासन, कूटनीति और सैन्य नेतृत्व तक में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। चित्रगुप्त की वंश परंपरा में जन्मे कायस्थ न्यायप्रियता, सत्यनिष्ठा और विवेक के प्रतीक रहे हैं।
योगीराज श्री अरविंदो कायस्थ को एक नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आदर्श मानते हैं। वे कहते हैं कि कायस्थ नाम किसी जातीय या भौगोलिक सीमा में नहीं बंधा है — यह एक गुणवाचक पहचान है, जिसमें समाहित हैं उदारता, नम्रता, सेवा, साहस, पवित्रता और ज्ञान के शाश्वत मूल्य।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने कायस्थ समाज को एक बार फिर संगठित किया, स्पष्ट रूप से कहते हैं:

हमारे मत में कायस्थ समाज से बढ़कर समाज के लिए कितनी उपयोगी तथा उसकी उन्नति में रुचि लेने वाली अन्य कोई संस्था नहीं है।

उन्होंने कायस्थों के भूले हुए गौरव को पुनर्जीवित किया, और उन्हें राष्ट्रनिर्माण के कर्मक्षेत्र में उतारने का कार्य किया।
आज पुनः समय आ गया है कि हम उस गौरवशाली परंपरा को जीवित करें।
हमारा मार्गदर्शन करें हमारे पूर्वजों के आदर्श, हमारी प्रेरणा बने भक्ति, समर्पण और सेवा का भाव, और हमारा अस्त्र बने ज्ञान, विवेक और साहस।
हमें फिर से कायस्थ समाज को नेतृत्व में लाना होगा — उस नेतृत्व में जो न्याय और करुणा पर आधारित हो, जो ज्ञान और विचार से प्रेरित हो, और जो राष्ट्र और मानवता की सेवा में समर्पित हो।
कायस्थ बनो — वह जो केवल अपने लिए नहीं, समाज, राष्ट्र और सृष्टि के हित में जीता है।
जागो, और समाज को भी जागृत करो। यही है तुम्हारा धर्म, कर्तव्य और गर्व।

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