सामाजिक एकता और संगठन की शक्ति
लेखक: डॉ. अशोक श्रीवास्तव,
राष्ट्रीय प्रधान महासचिव – अखिल भारतीय कायस्थ महासभा
हम जिस समाज में जीते हैं, उसकी शक्ति उसकी एकता में निहित होती है। और जब यह एकता उद्देश्य, मूल्य और संस्कारों से जुड़ जाती है, तब वह संगठन बनकर एक ऐसी शक्ति का निर्माण करती है जो समाज, राष्ट्र और संस्कृति – तीनों की रक्षा में सक्षम होती है।
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा आज केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक विचार, एक संकल्प और एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व का नाम है। यह महासभा समाज को जोड़ने, जागरूक करने और संगठित रूप में दिशा देने का कार्य दशकों से करती आई है। हमारी सभ्यता और परंपराएं हमें सिखाती हैं कि एक अकेला व्यक्ति भले ही बुद्धिमान हो, पर संगठित समाज ही परिवर्तन ला सकता है।
आज जब वैश्विक स्तर पर सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य खतरे में हैं, ऐसे समय में हमारा संगठित होना केवल आवश्यकता नहीं, अपितु कर्तव्य बन जाता है। कायस्थ समाज, जो इतिहास से ही शिक्षा, न्याय, प्रशासन और संस्कृति का वाहक रहा है, वह आज भी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभा सकता है — बशर्ते हम एक मंच पर संगठित हों, एक स्वर में बोलें और एक दिशा में आगे बढ़ें।
महासभा का उद्देश्य केवल आयोजन करना नहीं, बल्कि समाज को दिशा देना है। हमारे संगठनात्मक प्रयास तभी सार्थक होंगे जब समाज के अंतिम व्यक्ति तक हमारी पहुँच हो, जब युवा नेतृत्व को प्रेरणा मिले, जब महिलाएँ सशक्त बनें, और जब हमारी जड़ें संस्कृति में दृढ़ हों।
हमारे प्रयासों में श्री चित्रगुप्त प्राकट्योत्सव, शोभा यात्राएँ, शैक्षणिक सहायता कार्यक्रम, रोजगार मेले और सांस्कृतिक आयोजन जैसे कार्यक्रम समाज में नवचेतना का संचार करते हैं। आज समय की माँग है कि हम संगठन के दायरे को केवल रस्मों और पर्वों तक सीमित न रखें, बल्कि उसे समाज सुधार, नीति निर्माण और जनजागरण का माध्यम बनाएं।
मैं सभी कायस्थ बंधुओं से आह्वान करता हूँ —
आइए, हम एकजुट हों।
संगठित हों, संगठित रखें और समाज को जागरूक बनाएं।
क्योंकि जब एक विचार, एक संगठन और एक संकल्प मिलते हैं, तब इतिहास बदलता है।
जय चित्रगुप्त!
जय कायस्थ समाज!
जय भारत!
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