नारी शक्ति
नारी शक्ति का स्वयं
ही,असीमित स्त्रोत है
देव भी जिसकी शरण
में आकर,पाते मोक्ष हैं
शक्ति है जिसके बिना
शिव हैं यहाँ शव सदा।
यदि वह कहे निर्बल हूँ
तो,शक्तिवान फिर कौन ?
नारी ही तो जननी बनकर
जन्म पुरुष को देती है।
संस्कार की घुटी पिलाकर
वह उसका पोषण करती ।
माँ के आँचल में पल कर
संतान बड़ी जब होती है
तब भी माता की निगाह
सदा उस पर ही होती है।
अपने अधिकारों की रक्षा
स्वयं यहाँ करना होता है
सहधर्मिणी बन साथ सदा
वह अपने साथी के होती
साथी से दासी बन जाना
उसकी अपनी निर्बलता
जगजननी बन जो आई
उत्थान उसे सबका करना
उसका उद्धारक कृष्ण नही
अब इस जग में आने वाले,
अपनी शक्ति के बल पर ही
जग में नारी को ही उठना
उषा सक्सेना – भोपाल
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