कायस्थ जाति की उत्पत्ति कैसे हुई, कायस्थ की उत्पत्ति, ब्रह्मा के शरीर के अंग-विशेष से न होकर, सम्पूर्ण शरीर से, मानी गई है।

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कायस्थ जाति की उत्पत्ति की कथा रोचक है। ब्रह्मा के शरीर के, ऊपर से नीचे तक के, चार भागों से चार वर्णों की उत्पत्ति की कल्पना की गई थी। उनके कर्तव्य भी तदनुसार निर्धारित किये गए थे।

इन सबसे अलग कायस्थ की उत्पत्ति, ब्रह्मा के शरीर के अंग-विशेष से न होकर, सम्पूर्ण शरीर से, मानी गई है। ध्यानस्थ ब्रह्मा के शरीर से चित्रगुप्त महाराज उत्पन्न हुए। ब्रह्मा की काया में अवस्थित होने से कायस्थ कहलाए।

वे यमराज अथवा धर्मराज के सहायक हुए और तब से, आज तक, प्रत्येक प्राणी के हर अच्छे-बुरे कर्मों का, सही-सही, अद्यतन लेखा, पूरी निष्ठा एवं निष्पक्षता से रखते आये हैं, जिनके आधार पर, धर्मराज, उस प्राणी की मुक्ति अथवा पुनर्जन्म—कब, कहां, कैसा, कितना आदि के बारे में, न्यायपूर्वक विचार कर, निर्णय देते हैं। ऐसी हमारी पौराणिक मान्यता है।

कायस्थ, एक प्रकार से, वर्ण-व्यवस्था में समन्वय के सुंदर उदाहरण हैंं। अंतरजातीय विवाहों के अच्छे परिणामों के रूप में भी, इन्हें देखा जा सकता है।

कायस्थों को सभी वर्णों के गुण मिले और सभी वर्णों के कर्तव्यों का, उनके द्वारा, समयानुसार, सम्यक निर्वाह किया गया।

ज्ञान-ध्यान, अध्ययन, योग, आयुर्वेद में, वे, ब्राह्मणों के समान थे। कलम-दावात के, वे, पुजारी थे। लेखन को, अभिलेखन को, उन्होंने अपनी आजीविका का साधन बनाया। क्षात्र-धर्म भी निभाया।

सम्राटों से लेकर, मंत्रियों, सेनापतियों का दायित्व भी कुशलतापूर्वक निभाया। कभी विभिन्न राजवंशों के रूप में आधे भारत पर राज्य किया। शिवाजी के सेनापतियों के रूप में वीरता एवं बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया। क्रांति की धारा में भी कूदे, फाँसी पर झूले, दिल्ली चलो का नारा दिया।

विभिन्न शिल्प, उद्योग, व्यवसाय में भी सफल रहे और हर प्रकार से, समाज की सेवा करते रहे।

उत्तर, पूर्व, मध्य एवं पश्चिम भारत में कायस्थों की अनेक शाखाएं रहती आयी हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों में चित्रगुप्त-वंशीय कायस्थों की अधिकता है। बंगाल में कायस्थ, वैद्य आदि कुलीन या भद्रलोक में गिने जाते रहे हैं। महाराष्ट्र एवं उसके समीप चंद्रसेनी प्रभु कायस्थ पाये जाते हैं।

पंद्म पुराण के अनुसार, कायस्थों के आदि-पुरुष, चित्रगुप्त जी की दो पत्नियां थीं और उनसे उनके बारह पुत्र हुए। उनका प्रथम विवाह सूर्य-पुत्र श्राद्धदेव की कन्या सुदक्षिणा अथवा नन्दिनी से हुआ था। उनसे, उन्हें चार पुत्र हुए—भानु (श्रीवास्तव), विभानु (सूरजध्वज), विश्वभानु (बाल्मीकि) एवं वीर्यभानु (अष्ठाना)।

दूसरी पत्नी शोभावती अथवा ऐरावती, धर्म शर्मा नामक ब्रह्मा की कन्या थी। उनसे, उनके आठ पुत्र हुए—चारु (माथुर), चित्रचारु (निगम), मतिभान (सक्सेना), सुचारु (गौड़), चित्रचरण (कर्ण), हिमवान (अम्बष्ठ) चित्र (भटनागर) एवं अतींद्रिय (कुलश्रेष्ठ)।

इन संतानों से, पुनः, अनेक शाखाएं-उप शाखाएं निकलीं, जो विभिन्न प्रदेशों में फैलते गये।

इनका विवाह, नागराज वासुकी की, बारह कन्याओं से हुआ था। अत: ननिहाल की ओर से, कायस्थों को, नागवंशी माना जाता है।

कायस्थ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख, ईसा-पूर्व १७१-७२ की, मथुरा की, कुषाण शासक, वसुदेव प्रथम के अभिलेख में, देखने को मिलता है। इसमें किसी कायस्थ श्रमण द्वारा, बुद्ध की एक प्रतिमा का उपहार दिये जाने का उल्लेख है।

प्रथम कायस्थ अथवा मुख्य अधिकारी के रूप में, उनका उल्लेख, गुप्त सम्राट, कुमारगुप्त प्रथम (४४२ ई.) के शासन-काल में भी किया गया है।

उसी कालावधि में लिखी गई याज्ञवल्क्य स्मृति एवं विष्णु स्मृति में, उनका उल्लेख अभिलेख-सरंक्षक एवं लेखाकार के रूप में किया गया है।

क्षेमेन्द्र की संस्कृत रचनाओं से लेकर, बिल्हण की विक्रमांकदेव चरित एवं कल्हण की राजतरंगिणी में भी, उनका उल्लेख महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के रूप में किया गया है।

कायस्थ जाति, सुशिक्षित एवं बुद्धिजीवी मानी जाती है और मुख्यतः नौकरी-पेशा है। इस जाति ने, जीवन के सभी क्षेत्रों में, अनेकों महान विभूतियाँ पैदा की हैं। उनमें से कुछ नामों का स्मरण किया जा सकता है—

कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश का शासन था। काबुल से पंजाब तक जयपाल वंश, गुजरात में बल्लभी राजवंश, दक्षिण में चालुक्य राजवंश, उत्तर में देवपाल गौड़ राजवंश, मध्यम भारत में सातवाहन एवं परिहार राजवंश कायस्थों के थे।

देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद, प्रथम वित्त मंत्री तथा भारतीय रिजर्व बैंक के प्रथम भारतीय गवर्नर सी.डी.देशमुख, प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, जय प्रकाश नारायण, डा.सच्चिदानन्द सिन्हा आदि राजनीति के क्षेत्र में सर्वविदित हैं।

मुराबाजी देशपांडे और बाजी प्रभु देशपांडे ने शिवाजी के सेनापतियों के रूप में वीरगति पायी।

खुदीराम बोस, विपिन चन्द्र पाल, वाला हरदयाल, सुभाष चन्द्र बोस, रासबिहारी बोस, बटुकेश्वर दत्त, यतिन दास, बारिश घोष आदि ने अपने तरीकों से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया।

शंकर आबाजी भीषे, जगदीश चन्द्र बसु, शांतिस्वरूप भटनागर, मेघनाथ साहा, सत्येन्द्र नाथ बोस आदि प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं अनुसंधान-कर्ता हुए।

विवेकानंद, श्री अरविन्द, परमहंस योगानंद, महेश योगी, भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद आदि ने भक्ति एवं योग की जागृति फैलाती।

गणेश शंकर विद्यार्थी, महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, मुंशी प्रेमचंद, निर्मल वर्मा, राम कुमार वर्मा, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, रघुबीर सहाय, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, के.पी.सक्सेना, कुंवर बेचैन, रघुपति सहाय फिराक, गिरिजा कुमार माथुर, हरिवंश राय बच्चन, वृंदावन लाल वर्मा, विमल मित्र, प्रेमेन्द्र मित्र, जीवानंद दास, बुद्धदेव वसु, अमिताभ घोष, नीरद चौधरी आदि ने साहित्य एवं पत्रकारिता में अविस्मरणीय योगदान दिया है।

मुकेश, जयदेव, सोनू निगम, चित्रगुप्त, मन्ना डे, अनिल विश्वास, सलिल चौधरी, रौशन, आदेश श्रीवास्तव, आनंद-मिलिंद आदि ने संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

चित्रकला के क्षेत्र नंदलाल बोस, जामिनी राय, जतिन दास उल्लेखनीय हैं।

अभिनय एवं निर्देशन के क्षेत्र में मोती लाल, नूतन, तनूजा, काजल, अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, सोनाक्षी सिन्हा, श्रिया शरण, शरत सक्सेना, मधुर जाफरी, नंदिता दास, शेखर सुमन, राजू श्रीवास्तव, शंभू मित्र, गौतम घोष, उत्पल दत्त, सुचित्रा सेन, रिया सेन, राइमा सेन, सुष्मिता सेन, विपाशा वसु, राहुल बोस, हृतिक रौशन, कोयना मित्र, शिवेंद्र सिन्हा, वीरेंद्र सक्सेना आदि का योगदान महत्वपूर्ण है।

ध्यान चंद हाकी के जादूगर थे। उनके लड़के अशोक कुमार और राज कुमार भी हाकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी थे।सुव्रत गुहा एक अच्छे स्पिन गेंदबाज थे।

यह सूची काफी लम्बी हो सकती है।

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