कायस्थों को प्रगतिशीलता और स्वच्छन्दता के नाम पर अन्तर्जातीय और अन्तरधार्मिक विवाह पर विराम लगानी होगी – डॉ अनूप श्रीवास्तव

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कायस्थों को प्रगतिशीलता और स्वच्छन्दता के नाम पर अन्तर्जातीय और अंतर्धामिक विवाह पर विराम लगानी होगी – डॉ अनूप श्रीवास्तव

कायस्थों की बेटियाँ काली स्वरुपा और बेटे शिव स्वरुप हैं

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली – पूर्व प्रधान आयुक्त भारत सरकार डॉ अनूप श्रीवास्तव राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने कायस्थों से ये आव्हान किया है कि वे अपने बेटों व बेटियों की विवाह कायस्थ में ही करें तथा साथ में कायस्थ नवयुवक और नवयुवती प्रगतिशील विचारधारा और स्वछंदता के नाम पर नहीं भटकें क्योंकि उन्हें ये पता होना चाहिए कि कायस्थों की बेटियाँ काली स्वरुपा हैं और इसकी प्रमाण काली सहस्त्रनाम में उपलब्ध है क्योंकि माँ काली एक नाम कायस्थ भी है इससे ये ये प्रमाणित होता है कि कायस्थों की बेटियाँ काली स्वरुपा हैं ठीक इसी तरह से शिव सहस्त्रनाम में शिव का एक नाम कायस्थ भी है जिससे ये प्रमाणित होता है कि कायस्थों के बेटे शिव स्वरुप हैं।
यहां पर यह भी विदित हो कि काली के ताप को केवल शिव ही सह सकते हैं इसलिये दूसरी जात या धर्म के बेटों में काली के ताप को सहने की शक्ति नहीं है इसलिये प्रेम वश या आर्थिक कारणों से या कायस्थों में अधिक दहेज मांगने या सरकारी नौकरी वाले लड़कों की कमी कायस्थ में कम होने के कारण या अन्य कारणों से कायस्थों के बेटे – बेटियां यदि अन्तर्जातीय या अंतर्धामिक विवाह कर रहे हैं तो वे अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहे हैं क्योंकि यदि ऐसे अन्तर्जातीय या अंतर्धामिक के जीवन पर नजर डालें तो ज्यादातर वैवाहिक बंधन केवल टूट ही नहीं रहे हैं अपितु उनके यहां वंश भी नहीं हो रहा है और हो भी रहा है तो अधिकतर को लड़कियां ही हो रही है। हो सकता है कि पैसे की कमी न रह रही हो लेकिन ये भी सोचना जरूरी ही होगा कि यदि वंश नहीं होगा तो वंश वृद्धि कैसे होगी? ये भी कायस्थों की बेटियों को सोचना जरूरी है कि यदि वे अन्य जाति या धर्म में विवाह करेंगे तो कायस्थ के बेटे कहां जाएंगे और ठीक इसी तरह कायस्थ के बेटों को भी सोचना होगा कि वे अन्य जाति या धर्म में शादी करेंगे तो कायस्थ की बेटियाँ कहां जायेंगी।
इसलिए जरूरी ये है कि कायस्थ के बेटे – बेटियाँ उपजाति बंधन को तोड़ते हुये आपस में ही शादी – विवाह करें। कायस्थों को ये पता होना चाहिए कि वे वार्णिक व्यवस्था से ऊपर हैं और उनका दर्जा देवपुत्र – देवपुत्री का है जिनका अनुसरण अन्य वर्ण के लोग करते हैं और कायस्थ वार्णिक व्यवस्था के अंतर्गत कायस्थ गौड़ ब्राह्मण जिसका भी प्रमाण उपलब्ध है और कायस्थों से 10 अंक नीचे ऋषि कुल के ब्राह्मण हैं और उनसे 10 अंक नीचे राजपूत हैं और इसी तरह 10 – 10 अंक नीचे अन्य वर्ण हैं।
कायस्थों के बेटों को ऋषि कुल के ब्राह्मण और क्षत्रिय राजपूत की बेटियों से शादी की छूट मिली हुई है लेकिन बेटों – बेटियों में समानता के आधार पर ये छूट प्रदान नहीं की जा सकती है इसलिये कायस्थों के बेटों और बेटियों को कायस्थों में ही शादी करनी चाहिए क्योंकि कायस्थ के बेटे यदि ऋषि कुल के ब्राह्मण या क्षत्रिय राजपूत में शादी करने लगेगें तो कायस्थों की बेटियाँ कहां जायेंगी?
कायस्थों की बेटियों का अन्य वर्ण के बेटों से विवाह करने का कारण आजकल भावावेश में प्रचलित प्रेम विवाह है जो आगे जाकर सफल नहीं होती है और उससे भी बड़ी कारण दहेज प्रथा है जिससे प्रत्येक माँ – बाप परेशान रहते हैं और इसके पीछे खर्चीली शादी ही कारण है इसलिये दहेज मुक्त विवाह संपन्न किये जाने पर ही कायस्थों को जोर देनी चाहिए और खर्चीली शादी से निजात हेतु हर सम्भव प्रयास करनी चाहिए और कर्जे लेकर घी पीने या शादी करने की प्रथा पर विराम देनी चाहिए।
कायस्थों में हर सम्भव एकता स्थापित कर समाज में आई बुराईयों पर निजात पाने हेतु हल ढूंढनी चाहिये।
आगे डॉ अनूप श्रीवास्तव जी ने कहा कि विगत दिनों में कायस्थों में आई जागृति से अभिभूत हूं और स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी जी के जन्मदिवस पर आयोजित सफल कार्यक्रम के लिये सभी कायस्थों के प्रति आभार प्रकट करते हुये ये कहना चाहता हूं मेरी बातों को सभी कायस्थ ध्यान देते हुए अपने बेटों – बेटियों की शादी उपजाति बंधन को समाप्त करते हुये दहेज उन्मूलन हेतु भी कार्य करे और खर्चीली शादियों के साथ अन्तर्जातीय और अन्तरधार्मिक विवाह पर विराम लगाकर कायस्थों के सशक्तीकरण में महत्तवपूर्ण योगदान दें।

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