कायस्थ गौरव : मुंशी प्रेमचंद एक महान साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति और सामाजिक चेतना को फैलाया। उनकी कहानियों और उपन्यासों में देशप्रेम, सामाजिक न्याय और मानवता की भावना को दर्शाया गया है। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज को जागृत किया और देशभक्ति की भावना को फैलाया। वह हमेशा हम पाठकों के लिए ‘वर्तमान’ रहेंगे।
मुंशी प्रेमचंद, जिन्हें नवाब राय और धनपत राय के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति और सामाजिक चेतना को फैलाया। उनकी कहानियों और उपन्यासों में देशप्रेम, सामाजिक न्याय और मानवता की भावना को दर्शाया गया है।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही में हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं के लिए ब्रिटिश हुकूमत की सजा भी भोगी, लेकिन पीछे नहीं हटे। उनका पहला कहानी संग्रह “सोजेवतन” 1908 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें देशप्रेम की कहानियां थीं।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में सामाजिक चेतना और देशभक्ति की भावना को दर्शाया गया है। उन्होंने भारतीय समाज में सर्वाधिक शोषित तीन तबकों किसान, दलित और औरतों पर अपने लेखन को केंद्रित किया और पूरी पक्षधरता के साथ उनकी मुक्ति के हिमायती बने रहे।
उनका उपन्यास “रंगभूमि” 1925 में प्रकाशित हुआ था, जो उनका सबसे बड़ा उपन्यास है। इस उपन्यास में सूरदास नामक पात्र के माध्यम से गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलनों का नायक और उनकी नीतियों के प्रतिनिधि के रूप में पाठकों के बीच पैठ बनाई गई है।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में देशभक्ति और सामाजिक चेतना की भावना को दर्शाया गया है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय समाज को जागृत किया और देशभक्ति की भावना को फैलाया।
मुंशी प्रेमचंद जी का घर और स्मारक लमही
मुंशी प्रेमचंद : जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी और पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। उनके माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। प्रेमचंद जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।
उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ। 1906 में उनका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। वे सुशिक्षित महिला थीं जिन्होंने कुछ कहानियाँ और प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन सन्ताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उनकी शिक्षा के सन्दर्भ में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इण्टर किया और 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया। १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सिनेटोन कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके l
मुंशी प्रेमचंद: साहित्यिक योगदान
मुंशी प्रेमचंद, हिंदी साहित्य के एक महान लेखक, ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को एक नया दिशा देने का काम किया है। उनकी रचनाओं की संख्या 300 से अधिक है, जिनमें कहानियां, नाटक, उपन्यास, अनुवाद, और बाल-पुस्तकें शामिल हैं।
प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियां, जैसे कि सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि, निर्मला, कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, और बूढ़ी काकी, ने समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है।
उनका सबसे बड़ा उपन्यास, रंगभूमि, एक महान कृति है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। जबकि उनका सबसे छोटा उपन्यास, निर्मला, एक सामाजिक समस्या पर केंद्रित है।
प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को एक नया दिशा देने का काम कर रही हैं। उनका साहित्यिक योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
कायस्थ समाज मुंशी प्रेमचंद को अपना गौरव मानता है और उनकी जयंती पर शत शत नमन करता है। उनकी रचनाएं हमेशा याद की जाएंगी और उनका साहित्यिक योगदान हमेशा सम्मानित किया जाएगा।
आज के दिन, हम मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को पढ़कर और उनके संदेशों को समझकर उनकी जयंती को मना सकते हैं। उनकी रचनाएं हमें समाज के प्रति जागरूक रहने और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर, हम उन्हें शत शत नमन करते हैं और उनकी रचनाओं को हमेशा याद रखेंगे।
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