पढें मेरी कविता शीर्षक है : “माँ” – श्वेता श्रीवास्तव, मऊ, उत्तरप्रदेश

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“माँ सबसे छोटा शब्द…

बोलू तो एक पल लगता है, 

मेहसूस करूँ तो हर साँस महकती है,

समझना चाहूं तो जिंदगी कम लगती है… 

माँ एक ऐसी दर्पण है, 

जिसकी परछाई हूं मैं… 

माँ एक ऐसी समर्पण है, 

जिसकी मात्र एक इकाई हू मैं…

जिंदगी के हर मुश्किल का हल है माँ…

जिंदगी के तपति धूप में छाव है माँ… 

जिंदगी की हर साँस की देन हैं माँ…

धरा की सबसे खूबसूरत तस्वीर है माँ…

प्यार का समन्दर भी है माँ…

दुआओं से लिपटा गगन भी है माँ… 

बस ये समझना मुश्किल है कि, 

उपरवाले की सबसे अनमोल देन है माँ,

या 

 उपरवाले की ही स्वरुप है माँ…”

                                                          श्वेता श्रीवास्तव, मऊ, उत्तरप्रदेश 

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