वेदमाता गायत्री:
वेदमाता गायत्री के जन्म के विषय में अलग अलग तीन मत हैं ।कुछ लोग इनका जन्म गंगा दशहरा के दिन मानते हैं दूसरे मत के अनुसार ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को इनका अवतरण दिवस मानते हैं।अन्य मत के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा जो कि त्यौहार के रूप में रक्षासूत्र को ब्राह्मणों द्वारा मंत्र सिद्ध करके बंधवाते हैं उसे मानते हैं ।इनकी उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी पृथ्वी पर पुष्कर जी में लोककल्याण के लिये देवताओं एवं ऋषि-मुनियों के साथ यज्ञ कर रहे थे। किसी भी यज्ञ में पत्नीका होना आवश्यक है सनातन वैदिक भारतीय संस्कृति के अनुसार बिना पत्नी के कोई यज्ञ अथवा धार्मिक कृत्य सम्पन्न नही होता । किसी कारण वश ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री समय पर उपस्थित नही हो सकीं । पूर्णाहुति का समय निकला जा रहा था । उस समय वहां उपस्थित गायों का पालन करने वाली गायन कर ही गायत्री नाम की षोडशी कन्या से सभी देवताओं एवं ऋषि मुनियों के कहने पर उससे विवाह करने के पश्चात यज्ञ को संपूर्ण किया । इस प्रकार यज्ञ के माध्यम से गायत्री ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी बनी ।यज्ञ की समाप्ति के समय देवी सावित्री सजधज कर सोलह श्रृंगार से श्रृंगारित हो स्वर्ग से आगईं वह अपने आपको देवियों में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करना चाहती थी इसीलिए उन्हें सजने संवरने मे अधिक समय लगा।अपने स्थान पर दूसरी स्त्री को बैठा देख उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्मा जी को शाप दे दिया कि आज से इस पृथ्वी पर कोई भी आपका पूजन नहीं करेगा । इस कारण सभी देवताओं के मंदिर हैं किंतु ब्रह्मा जी का केवल पुष्कर जी में छोड़ कर और दूसरी जगह मंदिर नहीं पाये जाते। ब्रह्मा जी अपनी ही पत्नी सावित्री द्वारा गायत्री के कारण शापित होगये ,वह उनका परित्याग कर तप करने चली गईं ।
इस पृथ्वी पर यदि देवनदी गंगा को अथक प्रयास और कठिन तपके द्वारा अवतरित करने वाले भगीरथ हैं जिसके कारण गंगा जी का दूसरा नाम भागीरथी गंगा उनकी पुत्री के रूप में रूप में
विख्यात हुआ। इसी तरह मन को निर्मल करने वाली अध्यात्म की देवी गायत्री का पृथ्वी पर अवतरण करने वाले विश्वामित्र ऋषि हैं । जिन्होंने क्षत्रिय धर्म का परित्याग कर ऋषि धर्म अपनाया और अपने तप के बल पर वेदमाता ,एवं देवमाता गायत्री को पृथ्वी पर प्रकट किया ।त्रिपथगा देवनदी गंगा यदि हमारे तन का मैल धोकर उसे पवित्र करती हैं तो वहीं दूसरी ओर त्रिपदी वेदमाता गायत्री हमारे मन को निर्मल कर आत्मदर्शन के द्वारा मोक्ष का मार्ग बतलाती हैं ।
इस कथा के माध्यम द्वारा ब्रह्मा की दो पत्नियां सावित्री गायत्री हैं। ब्रह्म की दो शक्तियां हैं एक पराविद्या दूसरी अपरा विद्या । एक यदि भौतिक विज्ञान है तो दूसरी अभौतिक अध्यात्म का बोध करने वाली आत्मतत्व का सूक्ष्म ज्ञान ।
उषा सक्सेना:-भोपाल (म.प्र.)
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