भारत की प्रसिद्ध तीसरे सप्तक की एक मात्र कवयित्री कायस्थ कुल गौरव कीर्ति चौधरी की पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धा सुमन

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परिचय – कीर्ति चौधरी

कीर्ति चौधरी का जन्म 1 जनवरी, 1934 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के नईमपुर गाँव में एक कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ था। कीर्ति चौधरी का मूल नाम कीर्ति बाला सिन्हा था। उन्नाव में जन्म के कुछ वर्ष बाद उन्होंने पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख़ किया। 1954 में एम. ए. करने के बाद ‘उपन्यास के कथानक तत्व’ जैसे विषय पर उन्होंने शोध भी किया। हालांकि उनके पिता एक ज़मीदार थे, पर कीर्ति की माँ सुमित्रा कुमारी सिन्हा ख़ुद एक बड़ी कवयित्री, लेखिका और जानी-मानी गीतकार थीं। जाने माने साहित्यकार अजित कुमार उनके भाई थे। कीर्ति चौधरी का लेखन माँ के प्रभाव से मुक्त था और अपनी मौलिकता लिए हुए था। उनकी रचनाधर्मिता के पीछे अनुभवों की विविधता भी एक कारण रहा होगा। इसका संकेत कीर्ति अपने बारे में लिखते हुए देती हैं।- गाँव, कस्बे और शहर के विचित्र मिले-जुले प्रभाव मेरे ऊपर पड़ते रहे हैं।

विवाह
साहित्य कीर्ति चौधरी को विरासत में भी मिला और फिर जीवन साथी के साथ भी साहित्य, संप्रेषण जुड़े रहे। उनका विवाह हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेडियो प्रसारकों में से एक ओंकारनाथ श्रीवास्तव से हुआ था। वह बी.बी.सी हिंदी सेवा के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे। ओंकारनाथ श्रीवास्तव केवल रेडियो को अपने योगदान ही नहीं, बल्कि अपनी कविताओं और कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं। उनके परिवार में अब उनकी बेटी अतिमा श्रीवास्तव हैं, जो ख़ुद अंग्रेज़ी की लेखिका हैं। अतिमा के दो उपन्यास ‘ट्रांसमिशन’ और ‘लुकिंग फ़ॉर माया’ प्रकाशित हो चुके हैं।

साहित्यिक परिचय
कीर्ति चौधरी तीसरे सप्तक की एक मात्र कवयित्री थीं। तीसरा सप्तक’ (1960) के संपादक अज्ञेय ने 60 के दशक में प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और मदन वात्स्यायन जैसे साहित्यकारों के साथ कीर्ति चौधरी को भी तीसरा सप्तक का हिस्सा बनाया। कीर्ति चौधरी की साहित्यिक यात्रा यों तो बहुत लंबा-चौड़ा समय और सृजन समेटे हुए नहीं है पर जितना भी है, उसे किसी तरह से कमतर नहीं आंका जा सकता।

प्रसिद्ध रचनाएं
महादेवी वर्मा के बाद नई कविता में हुई रिक्तता को कीर्ति ने ही पाटा था। इनकी कवितायें इंसान और उसके जीवन से जुड़े अनुभवों के इर्द गिर्द घूमती हैं, नई कविताओं के अन्य रचनाकारों की तरह इन्होंने भी प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग करते हुए सम्पूर्ण जीवन की कविताएँ लिखी। इनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं-

तीसरा सप्तक
‘दायित्व भार’, ‘लता 1, 2 और 3’, ‘एकलव्य’, ‘बदली का दिन’, ‘सीमा रेखा’।

अन्य
‘कम्पनी बाग़’, ‘आगत का स्वागत’, ‘बरसते हैं मेघ झर झर’, ‘मुझे फिर से लुभाया’, ‘वक़्त’, ‘केवल एक बात थी’ इत्यादि।

निधन
नयी और मुखर कविता के लिए जानी जाने वाली वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती कीर्ति चौधरी का शुक्रवार 13 जून, 2008 को लंदन में भारतीय समयानुसार सुबह 3:45 पर निधन हुआ था। मृत्यु से पूर्व कीर्ति का लंदन में उपचार चल रहा था। इनके निधन से हिन्दी साहित्य जगत ने एक रत्न खो दिया है।

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