अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनूप श्रीवास्तव IRS के आह्वान पर “हमारी धरोहर, हमारा गौरव अभियान” के अंतर्गत वेद आशीष श्रीवास्तव युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा द्वारा प्रस्तुत
कायस्थ गौरव- नलिनी रंजन सरकार भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। उनका जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक था। उनका जन्म 1882 में बांग्लादेश के मैमनसिंह ज़िले में हुआ था, और वे एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार से थे। उनका शैक्षिक जीवन ढाका के पोगोस स्कूल और जगन्नाथ कॉलेज में शुरू हुआ था, लेकिन वित्तीय कारणों से वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। इसके बाद, उन्होंने विभिन्न देशों में जाकर व्यापार और उद्योग में अपनी पहचान बनाई।
नलिनी रंजन सरकार का राजनीतिक जीवन विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था। वे बंगाल के प्रसिद्ध नेताओं जैसे सुरेंद्रनाथ बनर्जी, महात्मा गांधी, सी. आर. दास और मोतीलाल नेहरू के साथ करीबी संपर्क में थे। वे बंग भंग विरोधी आंदोलन और 1920 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भागीदार रहे। इसके बाद, उन्होंने स्वराज पार्टी की सदस्यता ली और बंगाल कौंसिल के सदस्य चुने गए। उनका योगदान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण था और वे बंगाल के प्रमुख कांग्रेस नेताओं में गिने जाते थे।
उनका राजनीतिक जीवन और प्रभाव विशेष रूप से 1937 में दिखाई दिया, जब उन्होंने फ़ज़लुल हक़ के साथ ‘कृषक प्रजा पार्टी’ बनाई और इसके बाद वे वित्त मंत्री के रूप में कार्यरत रहे। 1941 में उन्हें वाइसराय की कार्यकारिणी में सदस्य नियुक्त किया गया, लेकिन 1943 में गांधीजी के अनशन के कारण उन्होंने वाइसराय की कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद, उन्होंने कांग्रेस में वापस शामिल होकर डॉ. वी. सी. राय के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला और बाद में 1949 में बंगाल के मुख्यमंत्री बने।
नलिनी रंजन सरकार के कार्यकाल में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए। वे औद्योगिक गतिविधियों, विशेषकर बीमा क्षेत्र, को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध थे। उनका योगदान भारतीय समाज और राजनीति में अमिट रहेगा।
नलिनी रंजन सरकार का निधन 25 जनवरी, 1953 को हुआ। उनके कार्य और उनकी कड़ी मेहनत आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
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