इस मंदिर में हैं चित्रगुप्त का कमरा यहां होता है पाप पुण्य का हिसाब
धर्मराज के एकमात्र मंदिर के रूप में विख्यात चौरासी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर में स्थित है l मान्यता है कि इस मंदिर में यमराज निवास करते हैं और यहां चित्रगुप्त का कमरा है यहाँ पाप पुण्य के कर्मों की अदालत लगती है और यहीं तय किया जाता हैं कि व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाएगा या नर्क
आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में
भारत के हिमाचल प्रदेश में हजारों की संख्या में मंदिर मौजूद हैं. और इन सभी मंदिरों के साथ कुछ न कुछ अनोखी कथा जुड़ी हुई है जो इन मंदिरों को खास बनाती है l इसी तरह हिमाचल प्रदेश का चौरासी मंदिर अपनी रोचक कथा और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में चार अलग-अलग धातु के अदृश्य दरवाजे भी मौजूद हैं l ये चारों दरवाजे सोने, चांदी, तांबे और लोहे से बने हुए हैं l
चौरासी मंदिर को लेकर अनूठी मान्यता
अगर आपको ध्यान हो तो ईश्वर स्तुति में एक पंक्ति आती है, चौरासी के छूटे बंधन इक्षित फल पावें l यह पंक्ति इस मंदिर से ही जुड़ी है l इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहाँ साक्षात यमराज के साथ चित्रगुप्त विराजमान हैं और यहां इनकी अदालत लगती है जिसमें लोगों के स्वर्ग या नरक में जाने का फैसला किया जाता है l यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में आदिकाल से एक शिवलिंग भी मौजूद है और मंदिर में एक रहस्यमय कमरा भी है जिसे चित्रगुप्त का कमरा कहा जाता है l यहाँ चित्रगुप्त जी सभी के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं l
धर्मराज की अदालत
मान्यताओं के अनुसार, किसी भी जीव की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा को चित्रगुप्त जी के सामने लाया जाता है और उसके अच्छे बुरे सभी कर्मों का हिसाब यहां होता है l चित्रगुप्त जी के रहस्यमयी कमरे के सामने ही एक और कमरा है जिसे धर्मराज की अदालत कहा जाता है l इसी कमरे में आत्मा को लाया जाता है और यहीं फैसला होता है कि जीव की आत्मा आगे कहां की यात्रा करेगी, इसी मान्यता के कारण यहां लोग आने से डरते हैं l
आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परिवार में किसी की मृत्यु होने पर मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को इस मंदिर में या किसी भी चित्रगुप्त मंदिर में जा कर मृत आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना करना जरूरी माना गया है l कहा जाता है कि चित्रगुप्त जी से आत्मा की मुक्ति के लिए उसके कर्मों की क्षमा याचना करने से उस आत्मा को जल्द मुक्ति मिलती है l साथ ही उसका तर्पण नदी या तालाब में करना चाहिए। साथ ही आत्मा की इच्छा पूर्ति के लिए पिंडदान और दान पुण्य जैसे सत्कर्म करने चाहिए। क्षमा याचना और सत्कर्म कम-से-कम तीन से चार वर्षों तक करना चाहिए। तब कहीं जाकर आत्मा को मुक्ति मिल पाती है।
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