चित्रगुप्त आन बसो मेरे मन में
मेरी उम्र गुजर गई भारत भूमि में
चित्रगुप्त गुप्त होकर मन में वास करना
इससे अच्छा निवास नहीं मेरे पास।
तेरी कृपा यदि हो जाये कहीं
भव से पार उतरूं इसी जीवन में।
चित्रगुप्त मेरी नैया पार लगा देना
बहुत कष्ट है इस मृत्यु लोक में।
शरणागत तेरी जो मैं हो जाउं
दक्षिणी द्वार का तेरी पहरेदार कहलाउं।
मेरी शान जो है तुझ से
अभिमान पास भी फटक न पाये।
सम्मान की मुझे फिक्र नहीं
स्वाभिमान मेरी मिट न पाये।
तेरे चरणों का दास हमेशा बना रहूं
ऐसी आशा है मुझे तुझ से।
चित्रगुप्त आन बसो मेरे मन में
मेरी उम्र गुजर गई भारत भूमि में।
प्रभु कृपासे रचित
-अजीत सिन्हा
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