हम आपको कायस्थों के खास खान-पान की रवायतों से रू-ब-रू करा रहे हैं. उनकी रसोई में बनने वाले खानों की विविधता और स्वाद की बात ही अलग रही है. आज की कड़ी में कायस्थों की चावल की पसंद और चावल के व्यंजन
लंच में पूरा खाना बनता है यानि रोटी, चावल, दाल, सूखी सब्जी, शोरबे वाली सब्जी, अचार आदि
अगर आप मोमो के शौकीन हैं तो यकीन मानिए कि ये उसका बड़ा भाई है
फरे में चावल के आटे की जगह गेहूं के आटा का इस्तेमाल भी होता है और मिलेट अनाज के आटों का भी
आज भी बात कायस्थ किचन में विविध प्रकार से चावल के इस्तेमाल और व्यंजनों की होगी. जिसमें खिचड़ी और दाल के फरों की बात होगी. इनका बनाने का तरीका कोई बहुत मुश्किल नहीं होता और स्वाद गजब का. कायस्थ रसोई में ये काफी पसंदीदा व्यंजन है.
मेरा मतलब ये कतई नहीं है कि मैं जिन कायस्थ क्यूजिंस के बारे में लिख रहा हूं कि वो कायस्थों के रहे हैं अपितु उनके किचन में ये सारे खान-पान पसंद किए जाते रहे हैं, उन्हें चाव से खाया जाता रहा है और नया अंदाज भी दिया जाता रहा है.
बात अगर चावल की हो रही है तो पिछली कड़ी में चर्चा हुई थी कि किस तरह भारत में जब 9000-10,000 ईसा पूर्व या इससे पहले खेती शुरू हुई तो चावल उगाया जाने लगा. हालांकि चावल इससे कहीं ज्यादा पुराना है. ये अनाज वास्तविक तौर पर दुनिया को भारत की देन है.
कभी होता था लोबिया जैसा ‘महाशाली’ चावल
हमें अगर सबसे अच्छे चावल की बात करनी होती है तो दिमाग में एक ही नाम आता है – बासमती. एक जमाना था जब भारत में महाशाली नाम के चावल की खास किस्म उगती थी, जिसके आगे सारे चावल फेल थे. अगर प्राचीन ग्रंथों या संदर्भों में महाशाली को खंगालें तो वहां इसका नाम जरूर मिल जाएगा. लेकिन हम इसे संभाल कर रख नहीं पाए, ये शनैः शनैः लुप्त हो गया. इस चावल का एक दाना काफी बड़ा होता था.
इसकी सुगंध का मुकाबला नहीं था
सातवीं सदी में एक प्रसिद्ध बौद्ध चीनी यात्री जुआन झांग भारत आया. उसने पूरे भारत का भ्रमण किया. गंगा के किनारे की खेती-किसानी देखी. बौद्ध मठों में गया. कई बरस वो भारत में घूमता रहा. फिर जब उसने भारत का यात्रा वृतांत लिखा, तो उसमें महाशाली चावल का जिक्र किया. उसने लिखा, महाशाली चावल का एक दाना ब्लैक बीन (लोबिया के एक दाने सरीखा) जितना बड़ा होता था. जब इसे पकाया जाता था, तो इससे आने वाली सुगंध और चमक गजब की होती थी. उसका कोई मुकाबला ही नहीं.
चावल की इस प्रजाति की खेती केवल मगध में होती थी. इसका उपयोग भी राजे-महाराजे और विशेष लोग करते थे. इसका इस्तेमाल आयुर्वेद में काफी होता था.
रहस्य है कि हमारे इस शानदार चावल की नस्ल कहां और कब लुप्त हो गई. खैर चावल के व्यंजनों पर आते हैं. कायस्थों की रसोई में अगर चावल से बनने वाले तहरी, पुलाव और बिरयानी जैसे लज्जतदार और भीनी-भीनी खुशबु वाले व्यंजनों को जगह मिली तो चावल के समाजवादी व्यंजन खिचड़ी को भी खूब पसंद किया गया.
लंच की थाली और डिनर का खाना
आमतौर पर अगर आप पूर्वी उत्तर प्रदेश के कायस्थों के घरों में जाएंगे तो वहां दोपहर को लंच में पूरा खाना बनता है यानि रोटी, चावल, दाल, सूखी सब्जी, शोरबे वाली सब्जी, अचार आदि. लंच हैवी होता है. रात के खाने में चावल आमतौर पर नदारद रहता है. रात का खाना हल्का होता है. अक्सर रात के खाने में खिचड़ी का मूड भी बन जाता है. गर्मा-गर्म खिचड़ी पककर थालियों (अब थालियों की जगह प्लेटें ले चुकी हैं) में आती थीं, उनकी स्वाद ही अलौकिक होता है.
चावल के आटे और दाल से बनने वाले फरे
चावल से बनने वाला एक खास व्यंजन दाल और चावल के फरे भी हैं. कहा तो इनको दाल के फरे कहा जाता है. मुख्य तौर पर इसमें चावल के आटे का इस्तेमाल होता है. अंदर उड़द और चने की पीसी हुई दाल का पेस्ट भरा जाता है. ये काफी हद तक गुझियां के आकार की होती हैं. खास ख्याल रखा जाता है कि चावल के जिस आटे को गूंथा जा रहा है वो ना तो बहुत नरम हो और ना ही बहुत कड़ा.
जब चावल के आटे को गूंथ लिया जाता था. तब इनकी छोटी-छोटी लोइयां बनाकर उन्हें छोटी और किंचित थोड़ी मोटी रोटियों की शक्ल दी जाती है. अब इस बेली गई गोलाकार कच्ची रोटी को दोनों ओर से मोड़कर उसमें दाल, मसाले और अनुपातिक नमक का मिला हुआ पेस्ट भरा जाता है. खयाल रखा जाता है कि दाल को कुछ घंटे पानी में भिगोने के बाद ही पिसा जाए, उससे ना केवल बेहतर तरीके से पिसेगी बल्कि बनने में इसका स्वाद भी बेहतर होगा. पहले तो इसको पीसने का काम सिल-बट्टे पर होता था. अब तो उसके लिए किचन में मिक्सी ग्राइंडर आ चुका है. दाल का पेस्ट भी बहुत गीला नहीं होना चाहिए.
जब चावल की गोलाकर आकृतियों में दाल भर जाए तो उसके अंदरूनी किनारों पर पानी लगाकर हाथों से प्रेस करते हुए चिपका दिया जाता है. चूंकि ये चावल का आटा होता है, लिहाजा पानी से तुरंत चिपकता है. यही फरा है. लेकिन अभी ये कच्चा है. जब कई फरे बन जाते हैं तो एक एक भगोने जैसे बर्तन में गुनगुने पानी में इसे डालकर बंद करके उबाला जाता है. पर्याप्त उबलने के बाद ये पक जाता है. अब इसे आंच से उतारें और खाने के लिए तैयार हो जाएं.
चटनी के साथ खाएं मजा आ जाएगा, फास्ट फूड भी फीका लगेगा
अगर इन फरों को चटनी से खाएं तो ये ना केवल स्वादिष्ट लगेगी बल्कि इसकी पौष्टिकता भी खासी होती है. अगर इन फरों को चाकू से कई टुकड़ों में काटकर फ्राई कर दें. चटनी या सॉस, अचार के साथ परोसें तो इसके आगे कोई भी फास्ट फूड फीका लगेगा.
इसको फ्राई करने के तमाम तरीके हैं. कुछ लोग इसे केवल सरसों तेल में जीरा और राई से फ्राई करते हैं. कुछ इसे डीप फ्राई करके इसमें प्याज के साथ तैयार भुने हुए मसालों का तड़का लगाते हैं. कई इसे डीप फ्राई करते हैं. इसे डीफ फ्राई करके मसालेदार सब्जी भी बना सकते हैं. अब ये आपकी इच्छा है कि आप इसे कैसे खाना और बनाना चाहते हैं. इसको फ्राई करने के कई वेरिएशन हो सकते हैं. अगर आप मोमो के शौकीन हैं तो यकीन मानिए कि ये उसका बड़ा भाई है. तमाम तरह की चटनियों के साथ खासा आनंद देता है. वैसे फरे में चावल के आटे की जगह गेहूं के आटा का इस्तेमाल भी होता है और मिलेट अनाज के आटों का भी.
चावल का ये व्यंजन
अब खिचड़ी पर आने से पहले चावल के एक और खास व्यंजन की बात करता हूं, जो मैं बचपन में अक्सर खाया करता था. अगर दिन या रात के खाने में चावल काफी बच गया हो तो उसे हल्के बेसन या बगैर बेसन जीरा, धनिया, मिर्च में गूंथकर पकौड़ियों की तरह तलकर खाइए. वाह क्या स्वाद मिलता है. बचे हुए चावल को फ्राई करके खाने का नुस्खा तो हम सभी के घरों में जमाने से चलता आया है. पहले घरों में ये खूबन बनता था.
70-80 के दशक तक की वो रसोई
खिचड़ी पर जाने से पहले पुराने जमाने के किचन की कुछ चर्चा कर लेते हैं. मुझे पुराने किचन के नाम पर ननिहाल की रसोई अक्सर याद आती है वो तीन ओर दीवारों से बंद और चौथी ओर से छत की एकदम खुला था. एक ओर की दीवार में जानबूझकर ईंटों के बीच कुछ ऐसे सुराख जैसी जगहें बना दी गईं थीं (जिन्हें मुक्के भी कहा जाता था) जिनसे धुआं, फ्यूम्स और हवा का आना-जाना सुलभ रहे. इस किचन में बाहर की ओर तोते के दो पिजरे रखे होते थे, तोते पिंजरे में उछलकूद मचाने के बाद जब स्थिरप्रज्ञ होते थे तो टूक-टूक इस खानपान की प्रक्रिया को देखते रहते थे. खुद हरी मिर्च और पानी में भीगी चने की दाल खाते थे. फिर आप जो बोलो, उसके कुछ शब्द अपने अंदाज में रटकर सुना देते थे.
सिलबट्टा, इमाम दस्ता, मर्तबानों में कई तरह के अचार
रसोई में एक ओर सिल-बट्टा रखा होता था तो एक ओर इमाम-दस्ता, मूसल, दही मथने वाली मत्थी. अलमारियों में मसाला और तेल, दालें अन्य सामान. चीनी मिट्टी के मर्तबानों में कई तरह के अचार. जिनका इस्तेमाल नियमित तौर पर खाने के साथ जायका बढ़ाने के लिए होता था. किचन इतने बड़े भी होते थे कि वहीं पर टाट या लकड़ी के आसन जिसे पीढा भी कहा जाता है, उस पर खाने के लिए बैठा सके और सामने थालियों और कटोरियों में खाना परोसा सके. अब तो ये परंपरा ही माडुलर किचन ने खत्म कर दी है.
कई तरह की अंगीठियां
किचन में तीन तरह की अंगीठियों का इस्तेमाल होता था. कोयले की अंगीठी, बुरादे की अंगीठी और लकड़ी का चूल्हा. बुरादे की अंगीठी भी अब लुप्त हो चुकी है. ये खास तरह की होती थी. इसमें अंदर दबा-दबाकर लकड़ी का बुरादा भरा जाता था, फिर नीचे से जलती हुई लकड़ी डाली जाती थी, जो धीरे धीरे इसके बुरादे को सुलगाती रहती थी. उस जमाने में मोहल्लों के आसपास कुछ लकड़ी के टाल जरूर होते थे, जहां बुरादा लेने के लिए बोरा लेकर जाना पड़ता था. फिर इसे रिक्शे या साइकल पर लादकर लाना होता था. अब ना तो लकड़ी के टाल रहे और ऐसी अंगीठियां. एलपीजी गैस का इस्तेमाल तब बहुत कम घरों में होता था.
कोयले भी दो तरह के
कोयले भी दो तरह के इस्तेमाल होते थे. एक कोयला जली हुई लकड़ी से मिलता था और दूसरा खनिज कोयला, जिसे कोयला पत्थर कहा जाता था. हर किचन में एक लोहे का तसला भी होता था, जिसमें भी लकड़ी के कोयले या उपलों को जलाकर शकरकंद, आलू अन्य भुनने वाले खानपान को पकाया जाता था. किचन में मिट्टी का घड़ा अनिवार्य था तो पीतल और कांसे का हंडा भी होता था. तब तक किरासिन तेल से चलने वाले स्टोव आ जरूर गए थे लेकिन उसका इस्तेमाल हल्के-फुल्के कामों में होता था.
भारतीय संस्कृति की विनम्रता को रिफलेक्ट करती है खिचड़ी
अब खिचड़ी पर आते हैं. खिचड़ी हमारा सबसे प्राचीन व्यंजन है. आयुर्वेद की नजर में परफेक्ट खाना भी और खास औषधि का भी. जिस तरह भारतीय संस्कृति में विनम्रता औऱ विविधता है, वैसा ही खिचड़ी के साथ भी है. खिचड़ी की यात्रा हमारे देश की सांस्कृतिक यात्रा को भी दिखाती है. हर राज्य में खिचड़ी के फ्लेवर और तरीके बदल जाते हैं.रसोई की कोई भी किस्सागोई इस भारतीय उपमहाद्वीप में खिचड़ी कथा के बगैर अधूरी है. तो खिचड़ी कथा की बात कल करते हैं. (सिलसिला जारी रहेगा)
साभार – जीवन शैली / न्यूज़ 18 हिंदी /कायस्थों का खान-पान 07
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