पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर प्रियंका श्रीवास्तव की रचना चित्रकूट हूँ मैं

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चित्रकूट हूँ मैं

माँ भारती का अभिमान
हूँ मैं, सनातन संस्कृति का
गान हूँ मैं, श्री राम के
चरणों की रज हूँ मैं,
इस भू धरा का दिव्य तेज
हूं मैं, सीता राम के जीवन
मूल्यों का केंद्र हूँ मैं,
हां.. चित्रकूट हूँ मैं,
पुण्यसलिल चित्रकूट हूं मैं,

राम के ग्यारह वर्षो का
साक्षी हूँ मैं, उस मर्यादा
पुरुषोत्तम का ही गौरव
हूं मैं, दिव्य राम की ही
तो एक आभा हूँ मैं…..
हां चित्रकूट हूँ मैं,
पुण्यसलिल चित्रकूट हूँ मैं,

जानकी रसोई की अग्नि हूँ
मैं, तो जानकी कुंड में वैदेही
का चरणामृत भी हूँ मैं,
रामघाट के पावन घाटों
में बसा हूँ मैं, तो कामदगिरि
के कण कण में बिखरा हूँ मैं
हां चित्रकूट हूँ मैं,
पुण्यसलिल चित्रकूट हूँ मैं..

श्री कामतानाथ की आत्मा
हूँ मैं, तो वाल्मिकी अत्रि
की ही छाया हूँ मैं,
रामकृष्ण जूदेव का
इतिहास हूँ मैं, तो बीरबल
और तेनालीराम का गवाह
भी हूँ मैं, मंदाकिनी की
दिव्य धारा में कल कल
बहता हूँ मैं तो संध्या आरती
की दिव्य जोत में जलता
हूँ मैं, हां चित्रकूट हूँ मैं,
पुण्यसलिल चित्रकूट हूँ मैं,

गुप्त गोदावरी में भक्तों
की चरण वन्दना करता
हूँ मैं, तो हनुमान धारा
के जल में भी रमता
हूँ मैं, लंका दहन की
रात्रि में, बजरंगबलि का
विश्राम हूँ मैं…
इस संसार से करता
उत्थान हूँ मैं…….

हां चित्रकूट हूँ मैं,
सब तीर्थों का सार हूँ मैं…
करता बेड़ा पार हूँ मैं,

हां चित्रकूट हूँ मैं, पुण्य
सलिल चित्रकूट हूँ मैं।

स्वरचित – प्रियंका श्रीवास्तव

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