पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय कायस्थ काव्य मंच पर सीमा खरे आह की रचना

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विनती

हे शारदे करती हूँ विनय सम्मुख तेरे कर जोड़ के,
तू कर चमत्कार हे! जगत मात्रिके
मानव अब धर्मों को तौलना छोड़ दे।

अपनत्व और सौहार्द्र के झरने सदैव झरते रहें ,
नफरतों ,अलगाव के तूफानों का रुख तू मोड़ दे।

काया ,साया ,रक्त, चेहरा
है सभी का एक सा,
हृदय में भरते घृणा रस घटक खड्ग प्रहार से फोड़ दे।

उपजें सद्भावना स्नेह उर मध्य सबके ,
बिछड़ते ,बिगड़ते , व्यथित जग कुटुंब को पुनः तू जोड़ दे।

हे शारदे ! हे!अम्बिके ! हे जगत जननी! जगदम्बिके !!
इन कामनाओं का फल मिले  सुखद
याचकों में मांगने की निरंतर होड़ दे।

सीमा स्वरागिनी खरे ‘आह’

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