कायस्थों ने भरी हुंकार – एक कविता कायस्थों के नाम

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कायस्थ जागरण
कायस्थों ने भरी हुंकार
जुल्म और अत्याचार नहीं
सहेगें बारंबार
अब न्याय लड़कर लेंगे सरकार।
जाग उठा है कायस्थ अब
जाग उठी है उसकी लेखनी
जागे हैं सारे नर – नारी
जागेगी सरकारी मशीनरी़।
हर जोर – जुल्म के टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है
इतना भी कमजोर न समझो
प्रतिकार का इरादा है।
शांति मेरे इरादे तो
अशांति का मुँहतोड़
जवाब देना जानते हैं
कोई करे यदि दुष्टता तो
उसे मिटाना जानते हैं।
दुष्टों ने ललकारा है
सोये शेर को जगाया है
ऐसे दुष्टों को सबक
सिखाना जानते हैं।
भातृत्व प्रेम ने अंगराईयां ली है
एकत्व करेगी चढाईयां
लड़कर लेंगे – मिलकर लेंगे
हर हाल में लेंगे न्याय की सुनवाईयां।
कमजोर कोई होता नहीं
कमजोर वक़्त होती है
पर इतने भी कमजोर नहीं
जीत सकें न न्याय की लड़ाईयां।
जाग उठा है कायस्थ अब
जुल्म अब न सहेगा
दुष्टों को उसकी औकात
बता कर रहेगा।
समग्र प्रयास ही मूलमंत्र है
दुष्टों के ताप मिटाने को
एकता से ही मिट सकेगी
जुल्म की चिंगारियां।
कायस्थ प्रेम की बिगुल बजी है
आ जाओ साथ निभाने को
आ. भा. का. म. को साथ देकर
अपनी अभिशाप मिटाने को।
लोग कहते हैं कि कायस्थ
कभी एक नहीं हो सकते
एकीकृत हो उन्हें जवाब दो
दुष्टों के आगे अपनी सीना तान दो।
*प्रभु कृपासे रचित*
-अजीत सिन्हा 🙏
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