श्री चित्रगुप्त केवल कायस्थों के ही नहीं अपितु सभी सनातनियों के देव हैं – अजीत सिन्हा

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अजीत सिन्हा
धार्मिक व आध्यात्मिक चिंतक
नई दिल्ली – मानो तो देव नहीं तो पत्थर, ऐसा सभी ने सुना होगा लेकिन धर्म धारण करने से और आस्था पर चलती है और ये आस्था वहां से आती है जहां वेद, पुराण जैसे धर्म ग्रंथ हैं जिनके अध्ययन करने से सनातन धर्म के बारे में पता चलती है जो सत्य पर आधारित है वो शाश्वत भी है अर्थात्‌ कभी न मिटने वाली धर्म।
इन्हीं वेद – पुराणों में श्री चित्रगुप्त का वर्णन है जिसका रसपान या तो धार्मिक व आध्यात्मिक मानव या शोधक करते हैं aब जाकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।
श्री चित्रगुप्त कायस्थ हैं क्योंकि वे सभी की काया में स्तिथ हैं और उनका चित्र गुप्त है और वे सभी प्राणियों या योनियों में निवास कर उनके कर्मों पर नजर रखते हैं और उनके कर्मों की गणना में उनके सहायक अन्य यम उनकी उनकी मदद करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
१८ पुराणों में एक पुराण गरुड़ पुराण भी है जिसका वाचन किसी सनातनी मानव की मृत्यु के उपरांत कर्मकांड कराने वाले पुरोहित करते हैं चाहे वे दिवंगत मानव सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी वर्ण या जाति के हों।
कहने का तात्पर्य ये है कि ये पुराण सनातनियों के जड़ में है जिसका श्रवण सभी सनातनी करते ही हैं जिससे ये स्पष्ट होता है कि श्री चित्रगुप्त सभी सनातनियों के देव हैं जो अपने हाथों में शास्त्र, कलम और तलवार भी धारण करते हैं और जब शास्त्र से बात न बने शस्त्र के प्रयोग के लिये भी शिक्षा देते हैं और कलम अर्थात् लेखनी शिक्षित या ज्ञानवान होने की प्रतीक है जो समाज को शिक्षित होने या रहने की शिक्षा भी देते हैं।
इसके अलावे वेदों या पुराणों में श्री चित्रगुप्त की व्याख्यान कई जगह मिलती है और सनातनियों या सनातन धर्म के मुख्य आधार वेद और पुराण, श्रुति – स्मृति, बाल्मीकि कृत रामायण, गीता, सिद्द कुंजिकास्त्रोत आदि ही हैं और सभी में कहीं न कहीं श्री चित्रगुप्त का उल्लेख मिलता ही है। और इन धर्म ग्रंथों को सनातन धर्म के लोग मानते हैं और इसमें देवों – देवियों की व्याख्यान उपलब्ध है उन्हीं देवों में पर ब्रह्म स्वरूप त्रिदेवों के साथ पर ब्रह्म स्वरूप श्री चित्रगुप्त का भी उल्लेख है लेकिन सनातनियों द्वारा त्रिदेव ब्रह्मा – विष्णु – महेश को तो सभी पूजते हैं लेकिन अज्ञानतावश श्री चित्रगुप्त को नहीं पूजते हैं और श्री चित्रगुप्त को केवल कायस्थ ही पूजते हैं और साथ में जानकर ऋषि कुल के ब्राह्मणों द्वारा वे पूजित हैं।
सार ये है कि श्री चित्रगुप्त केवल कायस्थों के ही नहीं अपितु सभी सनातनियों, कलमकारों और शास्त्र एंव शस्त्र धारण करने वालों के ऐसे देव हैं जिनका शासन त्रिदेवों और माता रानी को छोड़कर सभी देव – देवी, ऋषि – मुनियों, गंधर्व, राक्षस और ब्रह्मांड में व्याप्त 84 लाख योनियों पर चलता है, किसको किस गति जानी है, किसको स्वर्ग या किसको नर्क भोगनी है, किसको मोक्क्ष की प्राप्ति होनी है अर्थात् जन्म – मरण के बंधन से मुक्त होनी ये सब श्री चित्रगुप्त के फैसलों पर ही निर्भर है जिसमें त्रिदेव सहित माता रानी की इच्छा भी निहित होती है।
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