राजा राजेन्द्रलाल मित्रा: एक विद्वान और संस्कृति सेवक – पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन

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राजा राजेन्द्रलाल मित्रा जी की पुण्यतिथि पर हम उन्हें शत शत नमन करते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं।
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का जीवन परिचय:
जन्म: 16 फ़रवरी, 1822 ई., कोलकाता
शिक्षा: मेडिकल कॉलेज, कानून की पढ़ाई
कार्यक्षेत्र: एशियाटिक सोसायटी, वाडिया इंस्टीट्यूट, लेखन, संपादन
प्रमुख कार्य:
  • सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित करना
  • विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना
  • छांदोग्य उपनिषद, तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक, गोपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, पातंजलि का योगसूत्र, अग्निपुराण, वायुपुराण, बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार, अष्टसहसिक, उड़ीसा का पुरातत्व, बोध गया, शाक्य मुनि जैसे ग्रंथों का लेखन
  • विविधार्थ और रहस्य संदर्भ नामक पत्रों का संपादन
सम्मान:
  • एशियाटिक सोसायटी के अध्यक्ष (1885)
  • रायबहादुर और राजा की उपाधि (1888)
मृत्यु: 27 जुलाई, 1891
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा: एक विद्वान और संस्कृति सेवक
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का जन्म 16 फ़रवरी, 1822 ई. में कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा में बड़ी बाधाएं आईं, लेकिन उन्होंने अपनी योग्यता और अध्यवसाय से सफलता प्राप्त की।
मित्रा जी ने मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई की, लेकिन डिग्री नहीं ले सके। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की, लेकिन परीक्षा नहीं दे सके। लेकिन उन्होंने अपने अध्यवसाय से संस्कृत, फ़ारसी, बंगला और अंग्रेजी भाषाओं में दक्षता प्राप्त की और 1849 में एशियाटिक सोसायटी के सहायक मंत्री बन गए। यहां उन्हें पुस्तकों और पांड्डलिपियों का भंडार मिला, जिसने उनके अध्ययन को बढ़ावा दिया।
मित्रा जी ने एशियाटिक सोसायटी में 10 वर्ष तक काम किया और इसके बाद 25 वर्ष तक वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक रहे। उन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें छांदोग्य उपनिषद, तैत्तरीय ब्राह्मण और आरण्यक, गोपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, पातंजलि का योगसूत्र, अग्निपुराण, वायुपुराण, बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तार, अष्टसहसिक, उड़ीसा का पुरातत्व, बोध गया, शाक्य मुनि शामिल हैं।
मित्रा जी ने कायस्थ समाज की एकता के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये और उन्होंने अपने जीवन को संस्कृति सेवा के लिए समर्पित किया। उन्हें उनकी योग्यता के कारण सरकार ने पहले रायबहादुर और 1888 में राजा की उपाधि दे कर सम्मानित किया था।
राजा राजेन्द्रलाल मित्रा का निधन 27 जुलाई, 1891 को हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय संस्कृति और वांङ्मय के क्षेत्र में हमेशा याद रखा जाएगा।
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