कर्मफल भोगना ही पड़ता है चाहे राजा हो या रंक – अजीत सिन्हा

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दिल्ली – धार्मिक व आध्यात्मिक चिंतक अजीत सिन्हा ने सनातन धर्म के अंतर्गत कर्मफल के संबंध में कुछ वृतांत की चर्चा करते हुए कहा कि कर्मफल व्यक्ति को भोगना ही पड़ता चाहे वह मानव, महामानव, ऋषि – संत, देव – दानव, पशु – पक्षी – जानवर इत्यादि ही क्यों न हों? यहां पर विदित करना स्वाभाविक ही प्रतीत होता है अखिल ब्रह्मांड के मालिक श्री हरि विष्णु हैं और जिन्हें हम सभी परमात्मा कहते हैं और अखिल ब्रह्मांड के विधान (कानून) श्री चित्रगुप्त के अंतर्गत है इसलिये वे विधाता कहे जाते हैं और कर्मफल की न्यायिक व्यवस्था श्री चित्रगुप्त के अंतर्गत ही है इसलिये वे अखिल ब्रह्मांड के न्यायाधीश भी कहे जाते हैं और श्री चित्रगुप्त के सहयोगी उनके 14 यम उनके आदेश का पालन करते हुए जीवों को उनके कर्मफल के अनुसार गति प्रदान करते हैं जिनमें त्रिदेवों की इच्छा समाहित होती है।

कर्म दो तरह के होते हैं शुभ और अशुभ और जो अशुभ कर्म विशेष करते हैं वे पापी तथा जो शुभ कर्म विशेष रूप से करते हैं उन्हें पुण्यात्मा कहते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि पुण्यात्मा से पाप नहीं होता और उनसे भी पाप कर्म हो जाता है जैसे महाराजा युधिष्ठिर। पाप का कर्म लोग भोगना नहीं चाहते लेकिन पुण्य का सुख अवश्य ही भोगना चाहते हैं और पाप और पुण्य दोनों का फल क्रमशः दुःख और सुख है। पाप कर्म करके लोग दान – पुण्य, तीर्थ आदि करके चाहते हैं कि पाप नाश हो जाएगा किन्तु ऐसा नहीं होता है अपितु सत्य कर्म करने से आपके पाप की फल कुछ कम अवश्य होती है लेकिन फल तो भोगना ही पड़ता है।
कर्म के फल श्री राम तथा कृष्ण को भी भोगनी पडी है और साथ में पुण्यात्मा युधिष्ठिर को भी। इसलिये कर्म फल के दंड और पारितोष से कोई भी नहीं बचता और जो मानव – महामानव – ऋषि – संत और पुण्यात्मा मनुष्य दान – पुण्य, भजन और तीर्थाटन, अध्ययन कर सत्य को समझते हैं वे अपनी पाशविक वृत्तियों पर विराम लगाने का भरसक प्रयास करते हैं जिससे उनके दुःख कुछ कम तो सकते हैं लेकिन उनके द्वारा किये गये पाप का फल उन्हें भोगना ही पड़ता है और मनुष्य या किसी की भी पाप वृति कटी या कम हुई कि नहीं ये तभी पता चलता है जब उनके मन में पापवृति का उदय न हो और तब ऐसा समझना चाहिए कि पाप खत्म हो गया है और जब तक पापवृति उठती रहे तो समझना चाहिए कि आपके पापों का नाश नहीं हुआ है लेकिन ये भी निश्चित है कि सभी को कर्मफल भोगना ही पड़ता है चाहे वह राजा हो या रंक, दानी हो या महादानी, देव हों या असुर, मानव हों या महामानव, जानवर हों या पशु-पक्षी। जय सनातन जय चित्रगुप्त
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