श्री चित्रगुप्त से ही प्रारम्भ और उनसे ही अंत – अजीत सिन्हा

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बोकारो (झारखण्ड) – धार्मिक व आध्यात्मिक चिंतक अजीत सिन्हा ने आज अपने चिंतन के दौरान आमजनमानस को ये अवगत कराने की चेष्टा की जिसमें श्री चित्रगुप्त से मानव सहित 84 लाख योनियों से आरंभ की बात की तथा साथ में उनसे ही जीव, जीवन और दुनिया के अंत की बात की। क्योंकि श्री चित्रगुप्त 84 लाख योनियों के भाग्य के लेखक हैं और जिसने श्री चित्रगुप्त और उनके यमों को नहीं जाना उन्हें सनातन धर्म के बारे में पता नहीं है।
श्री चित्रगुप्त ब्रह्मा, विष्णु और महेश की ऐसी केंद्रीय शक्ति हैं जिनमें त्रिदेवों की शक्तियां संचित है और ये भूलोक सहित सभी लोकों पर केवल नजर ही नहीं रखते अपितु ये अवतारी, महामानव, मानव सभी को गति प्रदान करते हैं और किसको किस गति जानी है और किसे किस योनि में जन्म लेना है, किसको मुक्ति मिलनी है, किसको वैकुण्ठ लोक, शिव लोक जाना है यहां तक कि सब कुछ श्री चित्रगुप्त पर निर्भर है इसमें उनकी सहायता उनके सेवक 14 यम करते हैं जो चित्र, चित्रगुप्त, परमेष्ठी, अंतक, वैवस्वत, काल,यम, धर्मराज, मृत्यु, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, वृकोदर के नाम से जाने जाते हैं और जन्म से मृत्यु तक का क्रम इन्हीं से बंधा है, किसको जीवन में कैसी सुख – दुःख, मान – सम्मान, यश – अपयश, लाभ – हानि सब कुछ विधाता श्री चित्रगुप्त पर निर्भर है और इनमें त्रिदेवों की इच्छा निहित होती है। लेकिन दुःख की बात यह है कि प्रत्येक सनातनी के घर में श्री चित्रगुप्त की पूजन नहीं होती है अपितु अवतारी ने लोंगो के पूजन गृह में स्थान ले रखा है जो कि धर्म सिंधु ग्रंथ के अनुसार गलत है और उस ग्रंथ में अवतारी की पूजन सार्वजनिक जगहों पर ही करने की छूट मिली है और सनातनियों के पूजन गृह में केवल प्रकट होने वाले देवों – देवियों का स्थान है और दुनिया की गिरती व्यवस्था के पीछे आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से एक महत्तवपूर्ण कारणों में से एक यह भी है कि लोग अवतारी में तो लीन हैं लेकिन प्रकट होने वाले देवों – देवियों में तल्लीन नहीं। जबकि श्री चित्रगुप्त के सुमिरन, पूजन से लोगों की रक्षा होती है और उनके पाप कम हो जाते हैं और साथ में त्रिदेवों सहित शक्ति स्वरूपा माँ काली, दुर्गा और उनके नौ रूपों की उपासना से भी लोंगो के पाप कम होते हैं जो उनके सत्कर्मों – दुष्कर्मो – अकर्मों की गणना के दौरान उनके पाप को कम करते हैं और लेकिन सुखद बात यह कि परमात्मा नारायण श्री हरि विष्णु से और शिव – शक्ति से ज्ञानियों को अवश्य ही प्रेम है और जो देखने में अवश्य ही मिलती है लेकिन श्री चित्रगुप्त को हृदय में स्थान नहीं देना सनातनियों की सबसे बड़ी भूल है हालाँकि श्री चित्रगुप्त वंशज कायस्थ जाति के गौड़ ब्राह्मण देव पुत्रों – पुत्रियों ने उनके महत्व को जानते और पहचानते हुये पूर्ण सनातन की अलख को जगाये रखा है और दुनिया के लोगों को बताते रहते हैं लेकिन किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं कि सम्पूर्ण सनातन धर्म के बारे में जानने के लिए वेद – पुराणों का अध्ययन कर सत्य से परिचित हों और उसके अंतर्गत श्री चित्रगुप्त को भी अपने हृदय में स्थान दें। लोंगो को जब इस दुनिया से प्रस्थान या दिवंगत होना होता है तो श्री चित्रगुप्त के यम ही उन्हें ले जाने को आते हैं और उनके कर्मों के फल के अनुसार उन्हें गति प्रदान करते हैं।
जय श्री चित्रगुप्त जय सनातन 
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