वैशाख माह शुक्ल पक्ष की सप्तमी का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है ।आज के दिन ही
धर्मराज के द्वारा मृत्यु लोक के जीवों के कार्यों के आधार पर उनको न्याय पूर्वक दंडित करने का एकमात्र अधिकार केवल यमराज को ही था किंतु वह सही ढंग से जीवों की संख्या बढ़ जाने के कारण निर्ण नही कर पा रहे थै इससे धरा टा संतुलन बिगड़ रहा था । इसलिये वह सभी देवताओं को अपने साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास गये ।ब्रह्मा जी ने चिंतित हैकर उनकी समस्या सुनी और उन्हें आश्वासन देकर कि मैं इसका समाधान खोजता हूं कि आगे क्या करना चाहिये। यह कह कर वह उज्जैन में महाकाल के पास क्षिप्रा नदी के तट पर बैठ कर चिंतन मनन करते हुये ध्यान मग्न होगये । इस तरह 11000 वर्ष तपस्या करने के पश्चात वैशाखख शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उनकी तपस्या पूरण करते हुये उनकी आत्मा और मन से एक चतुर्भुज रूप धारी व्यक्ति का प्रादुर्भाव हुआ ।उनके एक हाथ में पुस्तक दूसरे में कलम तीसरे में तलवार और चतुर्थ हाथ वरदमुद्रा में था । अपनी तपस्या को फलीभूत वरदान सत्रहवे मानस पुत्र के रूप में प्रकट हुये उन्हें देख कर ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुये। उस व्यक्ति ने ब्रह्मा जी की वंदना करते हुये कहा -“हे पिता!मैं आपकी तपस्या से उत्पन्न आपका मानस पुत्र हूँ ।अत: मुझे मेरा नाम देकर किस कार्य के लिये आपने मुझे अपने चित्त में गुप्त रूप से धारण कर उत्पन्न किया है ।ब्रह्मा जी उन्हें देख कर अति प्रसन्न हो कहने लगे पुत्र तुम मेरे चित्त में गुप्त रूप से अभी तक थे इसलिये तुम्हारा नाम चित्रगुप्त भगवान के रूप में जाना जायेगा । सूर्य पुत्र धर्मराज मृत्युलोक से आये प्राणियों का निर्णय नहीं कर पारहे अत: तुम्हें अपनी इसी कलम के द्वारा पुस्तक रूपी बहीखाते में हर प्राणी के कर्मों का लेखा जोखा करते हुये धर्मराज की सहायता करनी होगी ।
मेरी काया। से उत्पन्न होने के कारण तुम और तुम्हारी संतान कायस्थ कहलायेगी जिसमें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के ही गुण समाहित होंगे । तभी सुधर्मा शर्मा ने जो ब्रह्मा जी के पास ही अपना आश्रम बनाकर तप कररहे थे अपनी पुत्री इरावती का विवाह चित्रगुप्त महाराज के साथ कर दिया । इसतरह से चित्रगुप्त भगवान की जन्मस्थली उज्जैन का वह क्षिप्रा तट है जहां पर ब्रह्माजी को उन्हें अवतरित करने के लिये स्वयं 11000वर्षों का भीषण तप करना पड़ा ।
कायस्थों में इसीलिये ब्राह्मण औरक्षत्रिय दोनों के ही गुण हैं वह वेदों की रचना के साथ ही राज्य की बागडोर भी संभालने में दक्ष है । चित्रगुप्त जी की दूसरी पत्नी नागवंशी दक्षिणा है ।
इरावती के आठ पुत्र और दक्षिणा के चार पुत्र
चित्रगुप्त जी की संतान है जि कायस्थ समाज की उत्पत्ति वह ब्राहमणों से भी दान लेने का सामर्थ्य रखते हैं ।स्वयं वशिष्ठ मुनि को उनका पूजन कर उन्हें दक्षिणा देने पड़ी थी ।इसका प्रमाण अयोध्या मै भगवान श्री राम के द्वारा बनवाया चित्रगुप्त भगवान का मंदिर है जिसकी प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात उनसे क्षमा मांगते हुये वशिष्ठ जी ने उनका पूजन कर दक्षिणा समर्पित की थी ।इस तरह से ब्रह्मपुत्र होने के कारण ब्राह्मणों से भी दान लेने का अधिकार उन्हें मिला ।
जै चित्रगुप्त भगवान की ।
उषा सक्सेना-भोपाल