कायस्थ गौरव : क्लर्क से क्रांतिकारी बने थे रास बिहारी बोस; अंग्रेज गवर्नर जनरल पर फेंका था बम, आज उनकी पुण्यतिथि

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कायस्थ गौरव : रास बिहारी बोस का जन्म बंगाल के एक कायस्थ परिवार में 25 मई 1886 को हुआ था। बोस काफी कम उम्र में साल 1905 में ही क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए थे। एक बार बोस गवर्नर जनरल लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग की हत्या करने का मन बना चुके थे। यह 23 दिसंबर 1912 का दिन था। इस दिन लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पहली बार कोलकाता आने वाले थे।
बंगाल के युवा क्रांतिकारी बसंत कुमार विश्वास को बम फेंकने की जिम्मेदारी दी गई। योजना थी कि लॉर्ड हार्डिंग हाथी पर बैठकर आएंगे और इतनी ऊंचाई पर सिर्फ बसंत कुमार विश्वास ही बम फेंक सकते हैं। जब गवर्नर जनरल की सवारी निकली तो चांदनी चौक पर रास बिहारी और बसंत कुमार पहले से मौजूद थे। बम फेंका गया और जोरदार विस्फोट से इलाके में भगदड़ मच गई।
घटना के बाद सभी को लगा कि हॉर्डिंग की मौत हो गई, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हार्डिंग घायल हुए और उनका हाथी मारा गया। रास बिहारी की ये कोशिश नाकाम हुई। इसके तुरंत बाद वो देहरादून लौट आए और सुबह ऑफिस जाकर पहले की तरह काम करने लगे।
गिरफ्तारी का खतरा देख जापान चले गए बोस उस समय फॉरेस्ट रिसर्च सेंटर, देहरादून में क्लर्क की नौकरी करते थे। हार्डिंग की जान को खतरा देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी। गिरफ्तारी का खतरा देख बोस जापान चले गए। अंग्रेज सरकार उनके पीछे पड़ गई। इस दौरान बोस ने जापान में 17 ठिकाने बदले। उन्हें जापान के एक ताकतवर नेता ने अपने घर में छुपाया। 21 जनवरी 1945 को उनका निधन हो गया।
आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंपी अगर आजाद हिंद फौज की बात की जाए, तो सबसे पहले दिमाग में सुभाष चंद्र बोस का ख्याल आता है, लेकिन इस सेना को बनाने में भी रास बिहारी का बड़ा रोल था। 1943 में सुभाष चंद्र बोस भारत छोड़कर जर्मनी पहुंचे। रास बिहारी ने सुभाष चंद्र को बैंकॉक लीग की दूसरी कॉन्फ्रेंस में बुलाया। 20 जून को सुभाष चंद्र टोक्यो पहुंचे।
5 जुलाई को नेताजी का वहां जोरदार स्वागत हुआ। उस समय रास बिहारी इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के प्रेसिडेंट थे। उन्होंने लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की कमान नेताजी को सौंप दी। इसके बाद रास बिहारी उनके सलाहकार की भूमिका में रहे। रास बिहारी को जापान सरकार ने अपने दूसरे बड़े अवॉर्ड ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन से सम्मानित किया था।
रूस के क्रांतिकारी नेता व्लादिमीर लेनिन का निधन लेनिन का असली नाम व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव था। वे एक रूसी साम्यवादी क्रांतिकारी और राजनेता थे। मार्क्सवादी विचारधारा के ध्वजवाहक रहे लेनिन को बोल्शेविक क्रांति का नेता माना जाता था। जार सरकार के विरोध में उन्हें कजन इंपीरियल यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था। इसके बाद लेनिन ने कानून की शिक्षा हासिल की।
साल 1889 में मार्क्सवादियों का संगठन बनाया। क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते उन्हें जेल जाना पड़ा। 21 जनवरी 1924 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके शव का अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उनकी बॉडी को एम्बाम (रासायनिक तरीके से संरक्षित) किया गया है। उनकी बॉडी आज भी मॉस्को के रेड स्क्वॉयर में रखी हुई है।
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