कायस्थों का खान-पान 06 : लालाकट तहरी यानि दैवीय स्वाद वाला लज़ीज़ व्यंजन

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हम आपको कायस्थों के खास खान-पान की रवायतों से रू-ब-रू करा रहे हैं. उनकी रसोई में बनने वाले खानों की विविधता और स्वाद की बात ही अलग रही है. आज की कड़ी में कायस्थों की चावल की पसंद और चावल के व्यंजन
 
कायस्थों की रसोई में बनने वाले खानों की विविधता और स्वाद की बात ही अलग रही है
कायस्थों की रसोई में चावल से कई व्यंजन बनते हैं – कई तरह खिचड़ी, तहरी, पुलाव और बिरयानी
कहने को तहरी साधारण और संतुलित खाना है लेकिन बेहद स्वादिष्ट

 
ये बड़ा सवाल है कि कायस्थों को चावल ज्यादा अच्छा पसंद है या गेहूं. हकीकत ये है कि दोनों. आज भी कायस्थों के परंपरागत परिवारों में दिन में अगर पूरा खाना बनता था तो शाम को अक्सर रोटी और सब्जी. अक्सर दिन या रात के खाने यानि लंच या डिनर को खिचड़ी या तहरी से रिप्लेस भी कर दिया जाता था. वैसे सही बात यही है कि पूरे देश में कायस्थ जहां कहीं भी जाकर बसे, उनकी रसोई में भांति-भांति के व्यंजनों के साथ गेहूं, चावल और दालों का संतुलन हमेशा बना रहा. आज मैं चावल की ही कायस्थों की रसोई में लंबे समय से बनती रही खास डिशेज की बात करने वाला हूं.
वैसे चावल के मुरीद तो पूरी दुनिया में हैं. इसकी कहानी बहुत रोचक है. कहा जाता है कि लाखों साल पहले चावल घास के तौर पर उगती थी. उसे जंगली घास माना जाता था. बाद में जब गुफा में रहने वाले आदिमानव ने कभी इसे यूं ही मुंह में दबाया तो इसका स्वाद उसे पसंद आया. इस घास के साथ उगे दानों को जब उसने यूं ही जमीन पर बिखेरा तो कुछ दिनों बाद वहां उसे चावल वाली घास उगी नजर आई. उसे समझ में आ गया कि ये खाने लायक चीज कैसे उगाई जा सकती है. योजनाबद्ध तरीके से भारत में खेती का इतिहास करीब 9000-10000 ईसा पूर्व पहले का है.
चावल के बारे में माना जाता है कि ये भारत से ही पूरी दुनिया में फैला. वैसे चीन भी यही दावा करता है कि चावल उसने पहले उगाया लेकिन हकीकत ये है कि चावल यहां से चीन पहुंचा. फिर दुनिया के दूसरे देशों में.
हाल ही में मैं देवेंद्र मेवाड़ी की किताब “फसलें कहें कहानी” पढ़ रहा था.जिसमें इसके बारे में विस्तार से बताया गया है. केटी अचाया की किताब इंडियन फूड हिस्ट्री इसे सिंधु घाटी सभ्यता से पहले से भारत में होना बताती है. दुनिया में धान के सबसे पुराने बीज उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर के गांव में मिले हैं.हमारी पूजा-पाठ से लेकर तमाम रीति रिवाजों को कोई ऐसा संस्कार नहीं है, जो चावल या धान के बगैर पूरा होता हो. हाल ही में अयोध्या के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पूजन के पहले पूरे देश में अक्षत चावल घर घर पहुंचाए जा रहे हैं. दुनियाभर में चावल की 40,000 से ज्यादा वैरायटी हैं. भारत में इसकी 1000 से ज्यादा मुख्य विविधताएं.
क्या फर्क तहरी, पुलाव और बिरयानी में
अब असल मुद्दे पर आता हूं. कायस्थों की रसोई में चावल से कई व्यंजन बनते हैं-उसमें सबसे मुख्य हैं- कई तरह खिचड़ी, तहरी, पुलाव और बिरयानी. चावल के आटे का इस्तेमाल चिला और फरे बनाने में होता है.
कई बार लोग उलझन में पड़ जाते हैं कि तहरी, पुलाव और बिरयानी में फर्क क्या है. तहरी पूरी तरह शाकाहारी अवधी व्यंजन है. इसमें हल्दी और बहुत कम मात्रा में कुछ मसाले मिलाए जाते हैं. पुलाव आमतौर पर चावल और मीट को मसालों के साथ पकाई जाने वाली डिश के तौर पर जानी जाती है. बिरयानी में चावल अलग पकता है और मसालेदार मीट अलग-फिर दोनों को एक के ऊपर दूसरी परत लगाकर बंद बर्तन में हल्की आंच में रखा जाता है. इसमें 21 तरह के मसाले पड़ते हैं.
केटी आचाया की “इंडियन फूड : ए हिस्टोरिकल कंपेनियन” (Indian Food : A Historical Companion) हिस्ट्री में पुलाव के बारे में कहा गया है कि महाभारत के दौरान ऐसी डिश बनाई जाती थी. ये भी कहा जाता है कि जब सिकंदर अपनी सेना के साथ भारत के पश्चिमोत्तर प्रांतों तक आया तो ये उसे इतनी पसंद आई कि इसे मकदूनिया ले गया.
कायस्थों की रसोई में तहरी कैसे पैदा हुई
वैसे तहरी के बारे में मुझको कहना चाहिए कि ये लखनऊ के कायस्थों का नायाब इनोवेशन है, जो नवाबों के पुलाव बनाने के तरीके से पैदा हुआ. कहने को तहरी साधारण और संतुलित खाना है लेकिन बेहद स्वादिष्ट. अगर सही अनुपात में चावल, सब्जियां, मसाले पड़ जाएं. ये सही तरीके से पके तो समझिए आपको दैवीय स्वाद ग्रहण होंगे. कायस्थ परिवारों में ये प्रिय खाना होता है. खासकर जाड़ों में जब तमाम तरह की सब्जियां उपलब्ध होती हैं-जाड़ों में गोभी, मटर और हरी धनिया इसमें जान डाल देते हैं.
तहरी बहुत साधारण और बहुत न्यूट्रीशियस भोजन है. अगर इसको चटनी, सिरके में डूबे कटे प्याज, रायता और पापड़ के साथ खाया जाए तो बात ही क्या. ये ऐसी डिश है, जिसे परोसते समय अगर शुद्ध घी मिला लें तो ये खाना आत्मा को भी तृप्त कर जाएगा.
तहरी में हमेशा अच्छे चावलों का इस्तेमाल करना चाहिए. सामान्य तौर पर तहरी बनाने के कुछ घंटे पहले बासमती चावल को नमक के पानी में भिगोकर रख देना चाहिए. इससे चावल का हर दाना क्रिस्टल की तरह अलग अलग हो जाएगा. यही तहरी के अच्छे चावल की पहचान भी है. हालांकि अगर इसे सादे पानी में भी भिगो रहे हों तो कोई दिक्कत नहीं.
बासमती की तहरी
जब भारत में तेवनियर (Jean-Baptiste Tavernier) नाम का फ्रांसीसी ट्रैवलर आया तो उसने पाया कि पहाड़ों की तराई में पैदा होने वाले बासमती चावल से बहुत शानदार तहरी बनाई जाती है. इसका हर दाना पकने के बाद खिलकर अलग-अलग नजर आता है.
वैसे अगर आप इसकी रेसिपी जानना चाहें तो कुछ इस तरह होगी-
डेढ़ कप बासमती चावल
01 प्याज
2 टमाटर
02 हरी मिर्च
01 चम्मच ताजा अदरक का पेस्ट और एक चम्मच लहसुन का पेस्ट
नमक स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर
आधा चम्मच जीरा
आधा चम्मच हल्दी
एक बड़ा आलू छोटे छोटे टुकड़ों में कटा हुआ
आधा कप छोटे छोटे टुकड़ों में कटी गोभी
आधा कप मटर
01 काली इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता
04 से 06 काली मिर्च के दाने
04 लौंग
एक से डेढ़ बड़े चम्मच तेल
कैसे बनाएं
तेल गर्म करें, प्याज को भूरा होने दें. कटी टमाटर मिलाएं. फिर कटी मिर्च, अब अदरक-लहसुन का पेस्ट. फिर एक साथ जीरा, हल्दी और लाल मिर्च पाउडर मिलाएं. इसे कुछ देर तेज आंच में भूनें. अब आलू, गोभी, मटर और चाहें तो कटी गाजर मिलाएं. आंच कुछ मध्यम करें. इसे कुछ देर भुनते रहें.
जब लगे सब कुछ आपस बेहतर तरीके से मिलकर भुन गया है तब इसमें करीब चार कप गर्म पानी मिलाएं. साथ में गरम मसाला भी. एक दो मिनट बाद चावल को निथार कर इसमें मिला दें. आंच तेज रखें, जब तक चावल और कटी सब्जियां पक कर ढंग से मिल नहीं जाएं, जब ऐसा लगे कि पानी करीब सूखने ही वाला है. तब आंच धीमी करें. इसे टाइट बंद कर दें कि भाप नहीं निकल पाए. 03-04 मिनट बाद आंच बंद कर दें. बंद बर्तन को 05 मिनट के लिए यूं ही छोड़ दें.
अब हरी कटी धनिया ऊपर से मिला दें. तहरी खाने के लिए तैयार है. अगर आप इसे चटनी, सलाद और रायता, अचार और पापड़ के साथ खाएं तो दिव्य स्वाद मिलेगा. ऐसा स्वाद आपको तृप्त कर देगा. वैसे तहरी कई और भी तरीकों से बनती है. आप अगर चाहें तो पनीर, फ्रेंच बीन, शिमला मिर्च, मशरूम के साथ भी इसे बना सकते हैं. (कड़ी जारी रहेगी..अगली किस्म में खिचड़ी और जाड़े में कायस्थ घरों की किचन में बढ़ने वाली रौनक की)
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