सुनहरे कल के लिए खुद को बदलें कायस्थ – आर. के. सिन्हा

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कायस्थ समाज में पैदा हुए विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुष (मसलन साहित्य में मुंशी प्रेमचंद, स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाषचंद्र बोस, अध्यात्म में स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद, राजनीति में राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री, क्रांतिकारियों में गणेश शंकर विद्यार्थी और खुदीराम बोस आदि) की चर्चा तो खूब होती है। कायस्थ समाज और नेता इनके नामों को दोहरा-दोहराकर अपनी पीठ ठोंकते रहते हैं। लेकिन, कायस्थ समाज में जो कमियां, कमजोरियां और कमियां हैं, उनकी चर्चा कम ही सुनने को मिलती है। मैं समझता हूं कि जब तक समाज इन बुराइयों से मुक्त नहीं होगा, गौरवशाली इतिहास को दोहराते रहने भर से समाज का भला नहीं होगा।
समाज में कई बुराइयां हैं, लेकिन मैं मुख्य रूप से दो गंभीर समस्याओं पर चर्चा करना चाहूंगा।
कायस्थों में सबसे बड़ी समस्या दहेज की है। बेटियों की शादी इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि मां-बाप के पास देने के लिए दहेज नहीं होता। किसी तरह उधार लेकर, जमीन बेचकर, मकान गिरवी रखकर अगर बेटी की शादी हो जाए तो परिवार की कमर टूट जाती है। पूरी जिंदगी वे लोग कर्ज चुकाने में ही लगे रह जाते हैं। अब कायस्थ परिवारों के पास न तो जमींदारी है और न कारोबार। जो कुछ भी बचा-खुचा है, वह है नौकरी। ऐसे में बेटियों की शादी में तिलक-दहेज का पैसा जुटाना काफी मुश्किल है। समाज की हालत ऐसी है कि दिन-ब-दिन दहेज की समस्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। मैं समाज के पढ़े-लिखे युवाओं से अपील करता हूं कि वे शपथ लें कि दहेज नहीं लेंगे और इस रिवाज का पूरी तरह विरोध करेंगे। जब तक युवक आगे नहीं बढ़ेंगे, तब तक इस समस्या का हल नहीं होगा। यह समस्या दूर होगी तो समाज आगे बढ़ पाएगा।
कायस्थ समाज में दूसरी बड़ी समस्या बेरोजगारी है। इस समुदाय में पढ़े-लिखे युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। प्रतियोगिताओं में बैठते जाइए, रोजगार के लिए चक्कर लगाते रहिए। कहीं कोई काम बना तो ठीक, वरना महीनों (कभी-कभी बरसों) यूं ही भटकते रहिए। पहले सरकारी नौकरी कायस्थ समाज की बपौती मानी जाती थी। इस समुदाय का बच्चा पढ़-लिखकर तैयार होगा, तो उसे सरकारी नौकरी तो मिल ही जाएगी, लेकिन आरक्षण के बाद स्थितियां बदलीं और सरकारी नौकरियों में कायस्थों की संख्या काफी कम हो गई। कायस्थ युवाओं को जरूरत है कि वे खुद का काम करें और नौकरी पाने की इच्छा रखने के बजाय नौकरी देनेवाला बनने की इच्छा रखें। वे यह काम बखूबी कर सकते हैं। मैं अपना ही उदाहरण देता हूं। 40 साल पहले मैं एक मशहूर अखबार में 230 रुपये महीने पर रिपोर्टर की नौकरी करता था। जेपी आंदोलन में भाग लेने के कारण नौकरी छूट गई और मजबूरन कारोबारी बनना पड़ा। लेकिन इसने मेरा इतना भला किया कि आज हमारा कंपनी ग्रुप 3.5 हजार करोड़ रुपये सालाना का कारोबार करता है और हमारी कंपनियों में हजारों लोग काम करते हैं। कोई भी शख्स मेहनत के बल पर अपने बिज़नस को शिखर पर ले जा सकता है। जब भी कोई युवा मुझसे मिलता है तो मैं उसे कारोबारी बनने के लिए प्रोत्साहित करता हूं, ताकि अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला कर सके। एक नौकरी से जहां एक घर चलता है, वहीं एक बिज़नस या कारोबार न जाने कितने घरों की रोजी-रोटी का जरिया बनता है। यह बात जिस दिन समाज की समझ में आ जाएगी, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा। (लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं। )
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